Book Title: Samaysara Samay Deshna Part 01
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Anil Book Depo

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Page 313
________________ २६७ समय देशना - हिन्दी इसलिए आप अर्द्धनारीश्वर हैं। इसलिए जो-जो व्याख्याता हैं, वे सब बन्धक होते हैं, पर व्याख्यान बन्ध का नहीं होता । बन्ध के लिए नहीं होता, बन्ध का विधान तो हो सकता है, पर बन्ध का व्याख्यान नहीं होता व्याख्यान निर्बन्ध के लिए ही होता है, व्याख्यान का विषय अबन्धता को प्रकट कराने के लिए ही होता है । तत्त्वज्ञान कथंचित विपरीत भी हो जाये, तब भी श्रेष्ठ है । हे ज्ञानी ! तत्त्वज्ञान विपरीत हो जाना अच्छी बात नहीं है, फिर श्रेष्ठ क्यों कहा ? इसलिए कहा कि ज्ञान विपरीत नहीं होता, तत्त्व विपरीत नहीं होता; विपरीत मान्यता होता है, अभिप्राय होता है। जिस दिन तेरा अभिप्राय बदल जायेगा, वही तत्त्व जो तू विपरीत कहता था, वही तेरा सम्यक्ज्ञान बन जायेगा, तुरन्त समझ में आयेगा । मेरी न मानो तो गौतम स्वामी से पूछो । गौतम को पहले विपरीत ज्ञान था, और जैसे- ही सर्वज्ञ के चरणों में पहुँचते हैं, एक मुर्हत प्रमाण काल में सारा का सारा ज्ञान सम्यक्ज्ञान हो गया। इसका मतलब यह मत समझना, कि आप विपरीत ज्ञान करें, आप ज्ञान सम्यक् ही करना, और सम्यग्दृष्टियों से ही करना, समीचीन ही करना । यह यथार्थ मानना, ज्ञानभ बढ़ता है, जब ज्ञाता के प्रति सम्यक् श्रद्धान हो, और सम्यक् श्रद्धावान हो। जिसे जिनवाणी पर श्रद्धा नहीं है, उसे व्याख्यान का आनन्द नहीं आता । कभी भी द्रव्य श्रुत को मिथ्याज्ञान मत कह बैठना | द्रव्यश्रुत कभी मिथ्या नहीं होता, मिथ्यापना तो भाव में ही आता है, नहीं तो यह समयसार ग्रन्थ भी मिथ्या हो जायेगा । ऐसा कहना कि मिथ्या द्रव्य श्रुत मिथ्या है। मिथ्या समूहो मिथ्या चेन्न मिथ्यैकान्ततास्ति नः । निरपेक्षा नया मिथ्या सापेक्ष वस्तुतेऽर्थकृत् ||१०८|| आप्त मीमांसा । एक बार तेरे संयम में दोष आ जाये, उसको जल्दी शुद्ध किया जा सकता हैदंसणभट्टा भट्ठा दंसण भट्ठस्स णत्थि णिव्वाणं । सिज्झति चरियभट्ठा दंसणभट्ठा ण सिज्झति ॥३॥ अष्टपाहुड | एक बार चारित्र में किंचित दोष आ गया, प्रत्याख्यान क्यो ? प्रतिक्रमण क्यों ? एक अन्तमुहूर्त पहले अशुभ किया, और द्वितीय अन्तर्मुहूर्त में केवली भगवन्त हो गये । परिणाम बदलते हैं पर्याय बदलती है। तू पर की विपरीत पर्याय को देखकर क्यों परिणाम कलुषित कर रहा है ? मुस्कराहट चेहरे पर इसलिए दिखती है, कि मैं जगत को निहारूँगा, तो जगत में कौन-कौन शुद्ध दिखेंगे, कौन अशुद्ध दिखेंगे ? मैं तुमसे ही पूछता हूँ, तुम घर में शुद्ध रहते हो क्या? मन्दिर शुद्ध होकर आते हो अरहंत की वंदना को उस एक क्षण की पर्याय को देखकर मैं तुझे श्रावक कहता हूँ, मैं क्यों अशुभ सोचूँ ? एवंभूतनय क्या कहेगा? यदि तुम दूसरे का अशुभ सोच रहे हो, तो वह अशुभ हो या न हो, पर तू अवश्य ही अशुभरूप है। भूतनय को मालूम, आप क्या कर रहे हो, मात्र शरीर के किये पर्याय को पकड़ते हो। आप अभी अध्ययन कर रहे हो तो विद्यार्थी कहलाओगे । पर इतना ही नहीं है । एवंभूतनय कहेगा, यह तो शरीर की बाहर की क्रिया चर्या की पर्याय को देखा । एवंभूतनय को भाव पर भी लगाओ न। जिस समय तेरा जैसा भाव होगा, उस समय तेरी परिणति वैसी होगी और उस समय तेरी जैसी परिणति होगी, तदरूप तेरे भावों की गति होगी । वह दिखेगी कैसे ? आयुबन्ध से पूछना कि जैसी परिणति होगी, वैसी गति का बन्ध होगा। जैसा साँचा होगा, वैसी ही वस्तु बनेगी। साँचा भिन्न था, फिर भी वस्तु को आकार दिया, ऐसे ही भटक नहीं जाना । पर की पर्याय को देखना भी वह साँचा है। मैं व्यवहार की बात कर रहा हूँ । सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण पड़ा, गर्भवती माँ से कहा कि देखना नहीं। ऐसा बोलते हैं; कि नहीं ? बोलते हैं। प्रदोष काल है, दूषित काल है, कालाचार है, कालाचार में भाव बदलते है। सम्पूर्ण तत्त्व को तत्त्व से पकड़िये । बादल होते ही पीतल के बर्तन काले क्यों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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