Book Title: Samaysara Samay Deshna Part 01
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Anil Book Depo

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Page 293
________________ समय देशना - हिन्दी २७७ द्रव्य न होता तो आज महावीर निर्वाण महोत्सव किसका होता ? हे मुमुक्षु ! वर्द्धमान का जीव मारीचि की पर्याय में तत्समय में वर्द्धमान नहीं था, तो भी मारीचि के प्रति अशुभ भाव नहीं लाना । क्यों ? उसको अशुभ मत कहो, अशुभ उसके परिणामों की दशा थी। अशुभ उसका मिथ्यात्व था, अशुभ प्रत्यय थे। समयसार यों कहेगा - मिथ्या दर्शनाऽविरति-प्रमाद-कषाय-योगा बन्ध-हेतवः ॥ तत्वार्थ सूत्र- अ.८सू.१।। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग जो बन्ध के कारण हैं वे आत्मा का स्वभाव नहीं हैं। कर्म का मिश्रीकरण न होता, तो आत्मा मिथ्यादृष्टि कैसे ? संभल कर सुनना यह समयसार है । आप उद्देश्य विपरीत मत समझना। मिथ्यात्व को मारीचि की पुष्टि नहीं समझ लेना, क्योंकि जिस ग्रन्थ को विराजे हुये है न, उस ग्रन्थ की ऊँचाइयों को स्पर्श करो। मिथ्यात्व कर्म सापेक्ष है, अविरति आदि कर्म सापेक्ष हैं, परन्तु आत्मा कर्म-निरपेक्ष है। हे ज्ञानी ! समयसार की भाषा सुनो। आत्मा मिथ्यात्व नहीं है। आत्मा कर्म या नो कर्म नहीं है। आत्मा की बन्ध दशा ये सबकुछ है। जब भी तू मोक्ष जायेगा, घोर मिथ्यादृष्टियों के बीच में भी रहेगा, लेकिन तब भी उसकी मिथ्यात्व पर्याय को नहीं देख पायेगा । हे वर्द्धमान ! आपके मध्य में कितने मिथ्यात्वी थे, यदि मिथ्यात्वियों को निहारते रहते, तो भगवान् नहीं बन पाते । ध्यान दो, जब तुम सराग दशा में हो, तभी वीतराग धर्म का व्याख्यान करना, और जब तुम वीतराग होने लग जाओ, तब वीतराग धर्म का भी राग छोड़ देना। वीतराग धर्म का राग भी वीतरागता को रोक कर रखेगा। लेकिन जब तक परम वीतरागदशा प्राप्त नहीं हुई हो, तब तुम मिथ्यात्व के राग को छोड़ देना और वीतरागता में अनुराग रखना। इसलिए जो मारीचि की पर्याय थी, जीव उस मारीचि की पर्याय के जो मिथ्यात्व रूप परिणाम थे, वे परिणाम हेय हैं, पर मारीचि का द्रव्य हेय नहीं है। जो होता है, वह मारक होता है, कि तारक होता है ? यदि गंधक को मुख में रख लिया जाये, तो बताने नहीं आ पाओगे कैसा था ? लेकिन उस के लिए भी गाय के घी में शोधा जाता है। पर बिना वैद्य के शोध नहीं पाओगे, वह सभी थाली में नहीं, काँसे की थाली में शोधा जाता है। काँसे की थाली में घी में फेंट-फेंटकर शोधा गया, और कितनी बार पानी से धोया गया और उसी गंधक को खाने वाले के चर्म रोग दूर हो जाते हैं, जिसे मारक कहाँ जा रहा था, वह तारक हो गया। जैसे गंधक की मारक शक्ति को गाय के घृत से नष्ट कर दिया, ऐसे ही मिथ्यात्व की जो शक्ति थी, उसको हमने सम्यक् शक्ति से क्षीण कर दिया, और जो आत्मा मिथ्यादष्टि थी संसारी थी वह आत्मा भगवान आत्मा हो गई। यह शक्ति थी समयसार जिसे आचार्य कुन्दकुन्द देव ने लिखा था । आचार्य भगवान् कुन्दकुन्द देव वैद्य शास्त्र के भी ज्ञाता थे। ऐसा कोई सुधी आचार्य नहीं होता, जो आगम के रहस्यों को न जानता हो, आत्मा के स्वरूप को समझाने के लिए पौद्गलिक द्रव्यों की ही आवश्यकता पड़ती है। पुद्गल का आश्रय लिए बिना आत्मा को समझाया नहीं जा सकता । दृष्टान्त जितने भी दिये जा रहे हैं सभी पौद्गलिक हैं। इसलिए परम सत्य तत्त्वों पर श्रद्धान करना और जब सम्यक्त्व प्राप्त हो जाये, तब तू स्वयं आत्मतत्त्व को ही निहारेगा, तो सम्पूर्ण तत्त्व अभूतार्थ हो गये, यहाँ तक कि भगवान की जो आत्मा थी, वह भी अभूतार्थ है। जिसके श्रद्धान से सम्यक्त्व को प्राप्त हुए हो, जब सम्यक्त्व के स्वरूप में लवलीन हो गया, तब भगवान का श्रद्धान भी तेरे लिए अभूतार्थ है। हे नाथ ! आप पर श्रद्धान करना सम्यक्त्व है, पर आप मेरे सम्यक्त्व नहीं हैं। मेरा सम्यक्त्व तो मैं ही हूँ। आप मेरे सम्यक्त्व हो जायेंगे, तो मेरे में आपका अंश आ जायेगा। मेरे में आपका अंश आ जायेगा, फिर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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