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समय देशना - हिन्दी को । स्वाध्याय अधिक करना । स्वाध्याय करने से गुस्सा नहीं आती कोध का शमन होता है। क्यों ? अन्दर भरता, बाहर निकलता । माला में अन्दर ही अन्दर भरता है, बाहर निकलता नहीं है। माला बन्द हुई, फिर फूटता है । तो माला फेरना बन्द मत कर देना, माला जरूर फेरना। लेकिन पचाना, क्योंकि आप गृहस्थ है। हम लोग अभी बड़े-बड़े संघों के बीच रहकर आये हैं। बड़े-बड़े साधक तीव्र साधना करते हैं, और एक क्षण में उसकी ज्वाला ऐसी फूटती है, कि बच्चा भी कहता है, भैया हम घर ही में अच्छे हैं। उससे बचना है। मैं माला का निषेध नहीं कर रहा हूँ, लेकिन स्वाध्याय करिए। उस साधना को पचाने की क्षमता लाइये । शक्ति तो बढ़ेगी । वैराग्य होने पर पुण्य बढ़ता है। इन बच्चों को कौन पूजता था? आज साधु बन गये तो तुम पाँव पूजते हो । यह चारित्र की महिमा है। तुरन्त ही यश बढ़ता है। संयम लेते ही यश बढ़ता है। वही पचाना सीखो। अपाय विचय धर्म्य ध्यान कीजिए। शत्रु से सुरक्षित रहने के लिए तलवार घर में रख ली। तलवार तो रख ली, पर वार करना सीखे नहीं, और रखना कैसे चाहिए, यह भी मालूम नहीं, और रखी वहाँ थी, जहाँ सोते थे । और बिना कवच के तलवार छीके पर टाँग दी। तलवार सिर के ऊपर टंगी थी, चढ़ गया ऊपर चूहा और काटी धीरे धीरे रस्सियाँ और तलवार गिरी और मृत्यु को प्राप्त हो गये । तलवार को लेकर आये थे, परन्तु वार करना, रखना सीखे नहीं । ज्ञानी ! संयम को धारण कर लिया, संयम पालन करना सीखे नहीं, दोष तलवार को दे रहे है, पर दोष क्यों नहीं देते अपने विवेक को ? संयम का दोष नहीं है। संयम किसी को पतित नहीं करता, पर संयम को प्राप्त करके भी सावधानी नहीं सीखे, तो संयम क्या करेगा? संयम तो पूज्य है । तो भगवान् ही बनायेगा । छोड़ेगा नहीं आपको भगवान बनाये बिना । पर तुम संयम को छोड़ना मत । संयम मालूम कैसा है ? किसी को चोट लग जाये, घाव हो जाये, खून बनने लगे, तो दवाई नहीं लगाना, शुद्ध चूना भर दो। वह तभी निकलेगा, जब घाव को भर देगा । उसके पहले निकलेगा नहीं, और निकालोगे तो उससे ज्यादा परेशान कभी नहीं होगे । पानी मत डालना, चूना भर दो । ज्ञानी ! संयम तभी अपने आपमें फलित होता है, जब वह आपको सिद्धालय भेज देता है । पर छुटाना मत।
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जिसने चारित्र को धारण कर बाह्य प्रपञ्च ही स्वीकार कर लिए हैं, उसे मोक्षफल दूर ही है ।
ज्ञानी ! विश्वास रखना, वैराग्य के अभाव में ज्ञान काम में नहीं आता। क्योंकि ज्ञान तो बहुत है । जब कषाय का उद्वेग होता है, तब ज्ञान कहाँ होता है ? ज्ञान हो तो वैराग्य की खोज करो । पर्वतों में नहीं, नदी नाले में नहीं, तीर्थ मंदिरों में नहीं, अंदर खोज करो ।
दसवें पूर्व का अध्ययन करने वाला भ्रष्ट हो जाता है। जादू टोना, तंत्र, मंत्र यह कुछ भी मोक्षमार्ग नहीं है। मोक्षमार्ग इन सबसे भिन्न है। आत्मा का स्वभाव परभाव से भिन्न है। वर्तमान में समाधि चाहते हो तो जादू-टोना, ज्योतिष आदि में नहीं चले जाना, इनसे निश्चित असमाधि होती है, क्योंकि इन विद्याओं को पचाना कोई सामान्य कार्य नहीं है ।
इस कलिकाल में चित्त चलायमान है, शरीर अन्न का कीड़ा है, फिर भी ऐसे समय में अरहंत की मुद्रा को धारण करने वाले मनुष्य हमें दिख रहे हैं, यही चमत्कार है पंचम काल का ।
आसन्न भव्य तत्त्वज्ञानी जीव ! यह चौदह गाथा प्रमाण समयसार की पीठिका है। इतना सुनकर ही परम तत्त्व का ज्ञाता हो जाता है। हेय-उपादेय को जानकर विशुद्ध दर्शन ज्ञान स्वभाव ही निज स्वरूप को भाता है । मात्र चौदह गाथा से, जो विस्तार रुचि वाला है वह नौ अधिकारों के द्वारा समयसार को जानकर पश्चात् भावना करता है। कुछ लोग एक सूत्र को सुनकर वैराग्य को प्राप्त हो जाते है। कुछ ऐसे भी हैं जो कहते
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