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समय देशना - हिन्दी
२६५ कैसे आ गये? बोले, रस्सी से । देखा तो वह रस्सी नहीं, सर्प था। जब मेरे राग में सर्प भी रस्सी नजर आ रही है, ऐसे प्रभु का राग कर लेता। ध्यान दो, ध्रुव सत्य है, कि राग एक बहुत सुंदर वस्तु है। राग न हो तो आपके पास कोई ताकत ही नहीं है। जिस दिन राग चला जायेगा, उस दिन घर में नहीं रह पाओगे । घर जाते क्यों हो? राग के कारण।
राग एक इतनी बड़ी शक्ति है कि उसके कारण इतना बड़ा भवन तैयार कर लिया।"स्निग्ध रूक्षत्वाद बन्धः' स्निग्ध रूक्ष ही से तो बंध हो रहा है। स्निग्धपना न हो तो बन्ध कैसे हो? यदि सीमेन्ट में स्निग्धपना नहीं होता तो यह बन्ध हो नहीं सकता था। और आत्मा में स्निग्धता न हो, तो परिवार बस नहीं सकता था। स्वतंत्र होना है। पुराने भवन बिखरते क्यों दिखते हैं ? स्निग्धता समाप्त होने लगी, तो अपना आश्रय छोड़ने लगी। ज्ञानी ! स्निग्धता समाप्त हो जाये तो बन्धन खुलने में देर नहीं। इधर सूखता है, उधर आप पानी डाल देते हो। पहले कितना सुंदर समय था, जब सम्मेदशिखर जाता था तो सब कुछ छोड़कर शांति से जाता था, आठ-दस दिन रूकता था। पर आज मोबाइल लेकर जा रहे हैं । आज रह ही नहीं पाता । उधर भगवान को हाथ से अर्घ्य चढ़ा रहें, उधर पत्नी से बातें चल रही हैं। अब बताओ पारसनाथ से मिलोगे कब ?
यथायथा समायाति, संवित्तौ, तत्वमुत्तमम् ।
तथातथा न रोचन्ते, विषया: सुलभा अपि ॥३७॥ इष्टोपदेश । जैसे-जैसे स्वात्मसंवित्ति का जागरण होगा, सुलभ से सुलभ विषय रुचिकर नहीं लगेगे। विषयों में रुचि जा रही है, इसका तात्पर्य यह है कि आत्मजागरण नहीं है । वैराग्य की खोज करो, अन्य कुछ मत खोजो। पहाड़ों पर नहीं, मंदिर में नहीं, भगवान् के पास भी नहीं । वैराग्य की खोज कीजिए । वैराग्य की शून्यता के सद्भाव के कारण ही आज त्यागियों का अपलाप हो रहा है। तन के साथ रहना भिन्न भाव है, पर स्वयं के साथ रहना भिन्न भाव है । वैराग्य तन के साथ नहीं रहता, वैराग्य तो वैराग्य के साथ रहता है और आवश्यकता है तत्त्व की। तत्त्वचर्चा नहीं होगी, तत्त्वबोध नहीं होगा, और बाहरी क्रियाओं में उलझ जायेंगे, तो वैराग्य तुम्हारे घर में नहीं आता।
यहाँ पूरा कथन सम्यक्त्व का चल रहा है। सम्यग्दृष्टि का वैराग्य ही मोक्षमार्ग है, ऐसे तो वैराग्य तो कुलिंगी भी धारण कर लेते हैं। अन्य से बे राग हुआ, पर मिथ्यात्व में तो राग चला गया। वैराग्य की ऊँचाइयों को निहारिये, वैराग्य यानी वैराग्य । फिर ये संबंधी, सब छोड़िये । पूज्य की पूजा की सामग्री का राग भी पूज्य नहीं होने देता। पूज्य की पूजा के लिए पूजनसामग्री के राग ने परस्पर के वात्सल्य का नाश करा दिया। चार बादाम रखे थे थाल में, पाँच पूजन करनेवाले थे। जब चढ़ाते हो तब देखना । एक बादाम के पीछे अन्दर का वात्सल्य हट गया, कषाय की गाँठ बढ़ गयी प्रभु के सामने खड़े होकर । धर्म करने आये थे, बादाम चढ़ाने नहीं आये थे। द्रव्य तो आलम्बन था, हाथ भी तो लगा सकते थे। कौन मंदकषायी, कौन तीव्र कषायी? द्रव्य की सत्ता में ग्रहण मत करना, द्रव्य की न्यूनता में मालूम चलता है । भूख कितनी लगती है, यह घर में नहीं पूछना। जब यात्रा पर जाओ और टिफिन एक ही हो, फिर पूछना । धीरे-से चुपचाप जाकर खा लेते हो। जितनी व्यवहारिक बातें हैं, सब में रहस्य भरा है। भूख कब लगती है? जब सामग्री कम हो, और लोग ज्यादा हों, तब मालूम चलती है, कि भूख कैसी होती है। भरे-भरे में वैराग्य नहीं झलकता। विपत्तियों के काल में वैराग्य की परीक्षा होती है। स्वर्ण की परीक्षा कसौटी पर ही होती है, और समता की परीक्षा विपत्तियों में ही होती है।
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