Book Title: Samaysara Samay Deshna Part 01
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Anil Book Depo

View full book text
Previous | Next

Page 275
________________ २५६ समय देशना - हिन्दी कैसे चलेंगे, उसके लिए आपको उसके नीचे का ग्रन्थ पढ़ लेना चाहिए, परन्तु समयसार ग्रन्थ में आप नीचे की भूमिका का लक्ष्य लेकर न आये । उच्च स्तर का ज्ञान नहीं होगा, तो उच्च गुणस्थान में गमन कैसे करेंगे ? आपने विपाक विचय धर्म्यध्यान किया, सिद्धों के अलावा सब कर्म के झूले में झूल रहे हैं, और सम्यग्दृष्टि के अलावा जगत में जितने जीव हैं, सब दुखी हैं, ध्रुव सत्य है। विपाक यानि कर्म का उदय (फल) ऐसा आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने स्पष्ट लिखा है । लक्षण शास्त्र, जैन दर्शन में कोई है, वह है सवार्थसिद्धि । जो परिभाषा सवार्थसिद्धि में लक्षित हो रही है, उस परिभाषा को कोई आचार्य नकार नहीं पाये, सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ परिभाषित ग्रन्थ है, विषयों की जितनी परिभाषा सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में है। इसके बाद जो भी आचार्य हुए उन्होंने वहीं परिभाषा अपनाई है । किन्हीं - किन्हीं आचार्यो ने तो सर्वार्थसिद्धि की पंक्ति वैसी की वैसी रख दी है। जो विपाक है, वह उदय है, कर्म का फल । ज्ञानियो ! समयसार को आज परभाव से शून्य कहा जा रहा । उस परभाव से शून्य जाये, तो विपाक विचय धर्मध्यान कहता है, कि मेरे से मिल के जाओगे, तो आप अवश्य भगवती आत्मा को प्राप्त कर पायेंगे, क्योंकि कण-कण स्वतन्त्र है । कोटि-कोटि दीनार का स्वामी अंतिम श्वांस ले रहा है। उस अज्ञ से पूछना - हे विज्ञ ! तू अपनी प्रज्ञा का प्रयोग कब करेगा । कोटि-कोटि कमाने में पाप किया था अब तू जा ही रहा है, इसका उपयोग कब करेगा। कम से कम अंतिम श्वासों में ही कहीं सप्त परमस्थान की प्राप्ति के लिए, सप्त क्षेत्रों में लगा देता । जो अर्जित किया है उसे आप भोग तो नहीं पाते, अर्जित करने वाला पापी होता है, और भोगता है कोई पुण्यात्मा । ध्यान से सुनो चक्र की सिद्धि प्रतिनारायण करता है, और हाथ में नारायण के आता है, और उसी चक्र से प्रतिनारायण का घात होता है । खड्ग को सिद्ध किया शंभू कुमार ने, और खड्ग हाथ लगा लक्ष्मण के, और उसी खड्ग से उसका वध हो गया। जिस द्रव्य को आप अर्जित करते हो, वही द्रव्य तुम्हारे प्राण ले लेता है। घर में तस्कर प्रवेश कर गये, छीना झपटी किये, और धन भी ले गया, और प्राण भी ले गया । यही कारण है यह वीतराग नमोस्तु शासन में सम्पूर्ण द्रव्यों को परद्रव्य कह दिया। राग भाव ही जब मेरा द्रव्य नहीं है, तो रागभाव का जो मल बाह्यद्रव्य मेरा कैसे हो सकता है ? और विपाक विचय आपसे कह रहा है, कष्ट परकृत नहीं है, पर निमित्त है। आपने कर्म का बन्ध न किया होता, तो उदय में कैसे आता? यह उदयावली में आया है, जो सुख-दुख नजर आ रहे हैं, ये हमारे आगम की प्रमाणिकता को सिद्ध कर रहे है। ऐसे संयोग हमें मिले हैं, यह हमारे सुकृत कर्मों का सुविपाक है। ऐसा भी तो परिवार मिल जाता है, आप मन्दिर में समयसार सुनने की बात करते, तब ही घर सदस्य कहते कि पहले घर का काम देखो। तो आपको बुरा लगता । ये ऐसा क्यों बोल रहे है। पर ध्रुव सत्य ये था, कि हमारे ऐसे अशुभ कर्म का उदय है। कि हमारे लिए जिनवाणी सुनने में अन्तराय डाल रहे है। आप यहाँ आ रहे है तो आपने पूर्व में पुण्य किया है। सब कुछ होने के बाद आपके पास खाली समय है, उसका आपने स्वाध्याय में लगाने का मन बनाया है, नहीं तो कोई ताश खेलते होंगे, कोई टेलीविजन देखते होगे, कोई सो रहे होगे, पर आप उस समय जिनवाणी सुन रहे हो। हमारा यह शरीर हमारा सहयोग कर रहा है, यह प्रबल पुण्य है। नहीं तो कोई असाध्य रोग हो जाता तो कैसे जिनवाणी सुन पाते? एक भावना जरूर भाते रहना । आरोग्ग बोहिलाह दिंतु समाहिं च मे जिणवरिंदा । किं ण हु जिदाणमेयं णवरि विभासेत्थ कायव्वा ||५६८|| मूलाचार हे जिनवर देव मुझे आरोग्य की प्राप्ति हो, और मेरी समाधि हो, ऐसी आपसे प्रार्थना है। यह मैं For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

Loading...

Page Navigation
1 ... 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344