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समय देशना - हिन्दी गन्ने का खेत देखा होगा। गन्ना के रसवंत होते ही या तो रस निकाल लो, नहीं तो गन्ना सूखना प्रारंभ कर देता है। जैसे ही रस आया गन्ने में, उसे निकाल लेते हैं। जैसे ही रस मिला, कि सूखा । आप ऐसे ज्ञानीजीव है, जिसने रस चूसा और गन्ना फेंका। आपके परिवार ने आपका रस चूसा कि फेंका। जब-तक आत्मा का रस इस तन में भरा है, तब-तक ये परिजन चूस डालेंगे। जैसे ही आत्मा का रस गया, ये तुझको जलाकर आ जायेंगे। क्योंकि गन्ने के खेत में आग लगाते हैं लोग। ऐसे ही एक पर्याय की शरीर से फसल (आत्मा) निकल गई, तो आग लगा दी। अब भी न समझो तो आप जानो, आपका काम जाने ।
कहाँ थे ? पुण्यजीव, पापजीव । सकषाय पापजीव, अकषाय पुण्यजीव । कुछ लोग यह मान बैठें है, भोग भोगने से निर्जरा होती है। नहीं, भोगों से निर्जरा किंचित भी नहीं होती। हाँ, होती है, चतुर्थ गुणस्थान की बात कर रहा हूँ, मिथ्यादृष्टि की बात कर रहा हूँ । ध्यान दो, भोग भोगने से भी निर्जरा हो जाती है । हे ज्ञानी ! तू अरहंत की पूजा करेगा, तो क्या निर्जरा नहीं करेगा ? किसकी ? अशुभ की। अरे ! भोगी भोग भोगेगा तो क्या निर्जरा नहीं करेगा? पुण्य की निर्जरा कर बैठेगा, पाप का बंध करेगा, पुण्य को नष्ट कर देगा । जैसे पुण्य करने से अशुभ की निर्जरा हो जाती है, ऐसे ही पाप करने से पुण्य की निर्जरा हो जाती है। दो धाराओं में समझना है । "बंधेऽधिको पारिणामिकौ च । क्या कारण है, कि चार दिन पहले करोड़पति था, आज रोडपति हो गया। अचानक तुझे क्या हो गया ? इतना अशुभ कर बैठा, कि जो पुण्य का द्रव्य रखे था, उसका पापरूप में संक्रमण हो गया। तो कुछ शुभ की निर्जरा भी कर बैठा । निर्जरा कर बैठना, यानी निर्जीण कर देना, जला देना । उसने जला दिया। यदि आप पुण्य करते हो न तो रोडपति को करोड़पति होते देखा जाता है। जिनके द्वारे पर हाथी झूमते थे, वहाँ श्वान नहीं बैठता। जिन पर मक्खी भिनभिनाती थी, आज वहाँ पंखा चल रहे हैं सोचो। यह क्या है ? तटस्थ होकर निहारिये
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ज्ञाता दृष्टाऽहमेकोsहं, सुखे दुःखे न चापरः ।
इतीदं भावनादाढ्यं चारित्रमथवा परम् ॥१४|| स्वरूप संबोधन ॥
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यहाँ लगाना । चमर को भी देखों, मक्खियों को भी देखो, और दोनों मेरे से अत्यन्त भिन्न हैं । मक्खियाँ भी मेरा स्वरूप नहीं हैं, चमर भी मेरा स्वरूप नहीं है। मैं तो अचरम स्वरूपी हूँ। यह साधु-स्वभाव है। तुम जगत् के लोगों को गाली देने में चूकते नहीं हो, पर वह गाली आप पर भी लागू होती है। किसी को पाक दिया, वह पापी हो या न हो, पर तेरी दृष्टि में पापपर्याय के प्रति द्वेषभाव झलक रहा था, सो तू पापी कह रहा था । तत्काल में तेरी परिणति क्या थी? तू पर की निन्दा कर रहा था, तू कषाय से भरा था, कि नहीं ? तू भी तो पापी है। भाग्यवान् जीव ही भगवान् की स्तुति कर पायेगा, अभागा निंदा ही कर पायेगा । और हमारे यहाँ भगवान् एक नहीं है, पंचपरमेष्ठी भगवान् हैं । भगवान् महावीर की आराधना में आदिनाथ की अवहेलना नहीं कर बैठना । आप भगवान् महावीर की प्रतिमा विराजमान करना चाहते हो, तो भगवान आदिनाथ की निन्दा मत करना। ठीक है आप भगवान् महावीर के भक्त हो, उनकी प्रतिमा विराजमान कर लो। पर यह मत कहना, कि हम भगवान् महावीर को ही सच्चा मानते हैं। अन्यथा तेरी दृष्टि खोटी है। तूने तीर्थंकर के तीर्थंकरत्व पर दृष्टि नहीं डाली । तूने एक पर्याय विशेष को देखा है। धर्म नहीं है तेरे पास । तीर्थंकर के स्वरूप में कोई भेद नहीं है । जो मूलगुण उनके पास हैं, वही दूसरे के पास हैं । आचार्य के छत्तीस मूलगुण एक ही आचार्य के पास नहीं, सभी आचार्यों के पास हैं। पर्यायों में देखकर पर्यायी की अवहेलना मत कर बैठना । आज आप पुण्य-पाप जीव का कथन कर रहे हो, इसमें समझना है, उलझना नहीं है । हृदय के तत्त्वों को
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