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समय देशना - हिन्दी
१८७ कहे कि हमारे कान की वारी (कुण्डल) ले लो, तो आप हंसोगे। क्यों? जिसके पास शुद्ध सोना रखा हो, वह कान की वारी क्या करेगा? ऐसे ही जिसने सोलह ताव को प्राप्त किया हो, वह प्रथम, द्वितीय ताप के सोने को क्यों देखेगा? उसका अनुभव नहीं करता। जो परम भाव के अनुभव से शून्य है और परभाव में लीन है। शुद्ध द्रव्य के स्वभाव से परमस्थान, ज्ञायकभाव को जानता हुआ, उसे प्रयोजनवान सोलह ताप का सोना दिख रहा है। किसको? जिसको परमस्वभाव प्रगट हो चुका है उसके लिए। यह हो गया निश्चयनय । ये किसका अर्थ हुआ "सुद्धो सुद्धादेसो णादव्वो परमभाव दरिसीहिं । ववहार-देसिदो पुण जे दु अपरमे ट्ठिदाभावे ॥१४॥" टीकाकार गाथा को छोड़कर नहीं चलते। जब शुद्धाशुद्ध भाव का आदेश करेंगे, तब परमभावदर्शी परमभाव से युक्त है। व्यवहार का आदेश किसको करना ? उसको छोड़ नहीं देना । बारहवीं गाथा कह रही है, कि व्यवहार को छोड़ नहीं देना । पर निश्चय के लक्ष्य को दूर मत कर देना। आप गाड़ी पर आये। जब चल रहे थे, तभी उतर गये थे, कि स्थान आ गया तब उतरे थे? यही बात है। जब तक गन्तव्य नहीं मिला, तब तक सीट को पकड़े रहे, कि कोई बैठ न जाये और जैसे-ही देखा कि गन्तव्य आ गया, तो किसी को नहीं कहना पड़ा, तुरंत छोड़कर आ गये । इसी प्रकार से, हे ज्ञानी ! जब तक तू परमस्वभाव को प्राप्त नहीं करता , तब तक व्यवहार की सीट पर बैठे रहना । जैसे-ही गन्तव्य स्थान आ जाये, तो धीरे से उतर जाना, छोड़ देना। यह व्यवस्था है। छूटेगा कि नहीं छूटेगा?
कभी आपने थाली में भोजन किया होगा? दोने में मिठाई खाई ? चाट के ठेले में जब कोई चाटता दिख जाये, तो शुद्ध तत्त्व वहीं समझ लेना । जब भरकर आता है दोना, तब जेब से पैसे निकाल कर देता है
और बड़े प्रेम से उस दोने को हाथ में लेता है। इतने प्यार से तो अपने बेटे को भी नहीं लेता है। वह हाथों पर दोने को बड़े प्रेम से लेता है और जैसे ही खत्म हुआ, वैसे ही उस दोने को कचड़े में फेंक देता है। ऐसे ही परिवार के लोग स्वार्थी हैं । वह दोहन कर लेंगे, फिर श्मशान पर फेंक देंगे। जब-तक आत्मा की मिठाई है, इस शरीर के पास, तब-तक रखे हैं, फिर फेंक देंगे। अभी सभी पूछते हैं कि आओ-आओ। तत्त्वज्ञान कहता है, कि जैसे दोने को मिठाई से रिक्त होते ही फेंक दिया जाता है, ऐसे ही आयुकर्म जिस दिन समाप्त हो जायेगा, ये पर्याय फेंक दी जायेगी, जला दी जायेगी। उस दोने के भी तुम पैसे देते हो। वह दुकानदार पागल नहीं है जो आपको मुफ्त में दे दे । वह दुकानदार जो मिठाई बेचता है, वह भी मिठाई को थैली में रखकर तौलता है, वह थैली का पैसा भी तुमसे ही लेता है। जिसको तोल के लाया था, उसे यों ही फेंक देता है। तुमने पुरुषार्थ करके, पुण्य करके मनुष्य आयु को पाया था और भोगते ही, ज्ञानी ! तू उसे छोड़ देता है। क्यों, क्या निहार रहे हो? आप ऐसा करना कि कह कर जाना, कि हम जायें तो हमारा शरीर भी भेज देना पार्सल से, बड़ी कठिनाई से प्राप्त किया था। पर ये बता देना, भेजना कहाँ है? पता और दे देना। देखो, अपनी सभा में बुद्धिमान विराजते हैं । वैद्य, डॉक्टर, वकील सभी बैठे हैं।
मोहेनसंवृतं ज्ञानं स्वभावं लभते न हि ।
मत्तः पुमान् पदार्थानां,यथा मदनकोद्रवैः ।।७।। इष्टोपदेश।। मोह से ढंका ज्ञान स्वभाव को होने नहीं देता है। आपको मालूम होना चाहिए। पीली हल्दी थी, सफेद चूना था, दोनों मिल गये, तो रंग बदल गया। ऐसे ही रंग बदल गये सब । अब ज्यादा क्यों सुनना चाहते हो? इतना ही सुनने से रंग बदल जाये। समझ में मुझे यह नहीं आता कि आप सिर क्यों हिलाते हो? महाराज नहीं बनने के लिये हिलाते हो, या महाराज बनना है इसलिए हिलाते हो, कुछ समझ में नहीं आता। जो परम
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