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समय देशना - हिन्दी १७३ स्वास्थ्य चला जायेगा । जो एक बार पक चुका है, उसे पुनः पकाओगे, तो उसके गुणधर्म नष्ट हो जायेंगे। जो शुद्ध को प्राप्त हो रहे हैं, शुद्ध की क्षमता रखे हैं, उन्हें अशुद्ध का उपदेश देकर अशुद्ध में मत ले जाइये । दूसरा पक्ष - सभी श्रावकों और साधुओं से हमारा कहना है, कि आप क्या थे, ये भूल जाइये। आप कौन हो, इस पर ध्यान दीजिए। आप क्या थे, यह शब्द स्मृति अब्रह्म है । आप क्या हो, यह ही ब्रह्म है। क्या होंगे, यह परमब्रह्म है । मैं सेठपुत्र था, व्यापारी था, मैं ऐसा करता था । धिक्कार हो । मुनि पर्याय को प्राप्त करके भी इतना समय किसमें निकाल रहा है ? पूर्व के भोगों पर । एक क्षण को आप घर में मन ले जाओगे तो एक क्षण में सबकुछ दिख जायेगा, और सबसे पहले वही दिखेगा जो नहीं देखना चाहिए था । मैं क्या था, उसे भूल मैं क्या हूँ, क्यों हूँ, इसे देखिए । मैं मुनि हूँ। क्यों हूँ ? सिद्ध बनने के लिए। उसकी तो चर्या का पालन विशुद्ध है । और जो ऐसा कहता है कि मैं ऐसा था, वह तो पीछे हो रहा है, जेसे कि गाड़ी को रिवर्स करोगे तो पेट्रोल जलेगा कि नहीं ? समय जायेगा कि नहीं ? पहुँचोगे कहाँ ? जहाँ से चले थे, वहाँ । मैं क्या था, वह नहीं कहना। मैंने अज्ञानता मैं ऐसे-ऐसे पाप किये हैं, मुझे उसकी आलोचना व प्रत्याख्यान करना है । पर ऐसा कहने वाले विरले हैं । वह तो यह कहेगा कि मैं विद्वान् था, मेरी सभा में बहुत भीड़ बैठती थी। अरे! क्या कहना चाहते हो? ये मानकषाय का चिन्तन चल रहा है। मैं श्रेष्ठी पुरुष था । मैं जहाँ जाता था, वहाँ गाड़ियाँ लगी होती थी। पर उन गाड़ियों में कितने जीव मरते थे, यह क्यों नहीं कहते ? आपसे मैं नहीं कहूँगा कि जाओ, वंदना कर आओ द्रोणगिरि की। आप जा रहे हो। कहाँ ? मैं तीर्थवंदना करने जा रहा हूँ। ठीक है, पर मैं आपको भेजूँगा नहीं। मैं तीर्थवंदना का निषेध नहीं करता, परन्तु आप गाड़ी से जाओगे, तो जीवहिंसा का दोष लगेगा । आप गाड़ी में जितना पेट्रोल जलाओगे, उतना हमारे यहाँ से माँस भेजा जाता है । कृत, कारित, अनुमोदना । जिनधर्म का पालन आपने व्यवहार से भी कर लिया, तो दुर्गति बच जायेगी। भावुकता में आकर विवेक मत खो देना । चिन्तन करो गहरा। आप पास के मंदिर को गाडी से जाते हो, तो आपके गमन के कारण माँस निर्यात होगा। आप पैदल जाते हो तो ईर्यापथ का तो पालन होगा ही, और जो माँस-निर्यात होना था तेरे कारण, वह नहीं होगा। पेट्रोल कहाँ से आता है, कैसे आता है, किसे मालूम नहीं है ? सभी को पता है । सिद्धांत को पढ़ना जानते हो, चरणानुयोग का पालन कितना करना ? चरणानुयोग के पालन में किंचित कमी में चरणानुयोग, करणानुयोग की बातें करने से तत्सम्बन्धी निर्जरा होगी, लेकिन करण छेद मोक्ष जानेवाला था, वह नहीं होगा। कारण बनता श्रद्धान् बढ़ाने के लिए, अशुभ से बचाने के लिए । 'सर्वार्थसिद्धि 'से पूछिए कि आपने चारित्र को अन्त में क्यों लिखा ?
" सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः ''॥१/१॥ ता.सू.॥
जब तक अभी अपन छोटे क्लास में थे, तब तक चलता है । यह सूत्र क्या कह रहा है ? चारित्र को अन्त में क्यों रखा? करण यानी साधन । साधकतं करणम् । जब भी व्याख्या करो, तो इस सूत्र को तो दिमाग में स्थित करके रखना।" साधकतं करणम्" यह जैनेन्द्र व्याकरण का सूत्र है। और आचार्य अभिनवयतिभूषण ने "न्याय दीपिका' में सुन्दर प्रयोग किया है। साधकतम् साधन मोक्ष के लिए सम्यक्त्व नहीं, ज्ञान नहीं साधकतम् साधन है सही चारित्र । दो होने के बाद छूट भी जाते हैं, दो होने के बाद संसार भटक भी लेता है, परन्तु तीसरा होते ही बत्तीस भव से आगे भटक नहीं सकता ।
आचारांग पहला है। यहाँ चारित्र की प्रधानता से कथन कर रहे हैं । 'आचरण तुम्हारा शुद्ध नहीं,
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