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समय देशना - हिन्दी शिथिल हो गई, फिर भी समझ में नहीं आ रहा, यह क्या समझना चाहता है ?
बिना न्याय के अध्यात्म समझ में नहीं आता। आप भाग्यशाली हो कि बनाबनाया मिलता है । शुष्क होना है। मिट्टी सूखी है, तो हाथ सूखा है। सूखी मिट्टी उड़ती है, आप पानी डालकर मिट्टी को दबाते हो। जो मिट्टी नभ में उड़ रही थी, तुमने उसे दबा दिया। तो, ज्ञानी ! चैतन्य घट शुष्क होने पर आत्म-धूल सिद्धालय की ओर उड़ती है । पर राग का पानी सींचते हो, कि तुम दब जाओ। दबा ही पायेंगे, उड़ा नहीं पायेंगे । शुष्क हृदय जब हो जाता है राग के नीर से, तब आत्मा करती है ऊर्ध्वगमन । शुष्क होना चाहिए।
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परन्तु ध्यान दो, शुष्क का तात्पर्य किसी को अशुभ शब्द बोलना नहीं समझना । शुष्क का तात्पर्य वात्सल्य का अभाव मत समझना । महाराज ! देखें । अरे ! हमें नहीं मालूम, अभी बात मत करो हमसे । यह कोई शुष्क है, नीरस है, इसमें कोई रस नहीं है। स्वतंत्र हो जाओ, पूर्ण स्वतंत्र हो जाओ। अपने मस्तिष्क में लाइये कि मैं पूर्ण स्वतंत्र हूँ । परिवार को दोष मत देना, परिवार पर खोटे भाव मत लाना । राग का पानी उलीचिये, परिवार को दोष मत दीजिए। परिवार बाँधकर रखता नहीं । मन में किंचित भी राग न हो तो परिवार किसी को पकड़ता नहीं है। आप कितना ही कहें, कि महाराज ! गृहस्थी देखनी पड़ती है। मैं तो नहीं मानूँगा, क्योंकि मैंने देख लिया है कि कोई किसी को पकड़ सकता नहीं, पकड़कर रख सकता नहीं । जब मैं ही ढीला पड़ता हूँ, तभी मुझे लोग पकड़ते हैं। ये तो आप स्वयं वेदन कर रहे हो। क्या घर में ऐसे शान्त बैठते हो ? नहीं बैठ पाते हो। यह चमत्कार है, आश्चर्य है कि यहाँ पर एकसाथ शान्त बैठे हो ।
जो विद्या सीखनी है, उसके अध्यापक के पास बैठना पड़ता है। निज स्वरूप को पाना है तो ब्रह्मविद्या को जाननेवाले के पास जाना पड़ेगा। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का प्रभाव पड़ता है। पर द्रव्यक्षेत्र का भाव आता है, कि आपका जैसा मन चाहता है, वैसा आपका द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव बनता है ? जिस हाल
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आप बैठे हो, इस हाल में 'समयसार' चल रहा है, इस हाल में ही शादी होती है । हे ज्ञानी ! जो परम अमंगल का कारण है, उसे मंगल कहता है, और जो परम मंगल है, उसे देखता नहीं है। भाव निर्मल हो तो क्षेत्र निर्मल हो जाता है । पर की गाली से प्रभावित मत होना, तेरे मस्तिष्क को प्रभावित करने का काम कर रहा है। ऐसी बातें डाली गई कि सोचने लग गया। मालूम चला कि जो घंटों-घंटों प्रवचन सभाओं को बाँधकर रखता है, वह उन्मत्त हो रहा है। विक्षिप्त हो जाओगे । चार व्यक्ति आयें आपके कमरे में, एक-सी बातें करें, क्योंकि आप अकेले हो । चार की वर्गणाएँ एक-सी चल रही हों तो भ्रमित कर देंगे। आप साधु-संतों के पास नारियल चढ़ाने अकेले नहीं जाते, समूह में जाते हो । अन्दर की बात क्या है ? भीड़ की उपस्थिति ने आपको प्रभावित कर दिया। शादी में भीड़ रहती है, दूल्हे को घेरे रहते हो, माहौल बना देते हो, जिससे वह खुश हो जाता है। पर जब छोड़कर जाते हैं, तब मालूम चलता कि क्या हो गया।
चलते-चलते जब व्यक्ति थक जाता है तो थोड़ी देर पेड़ की छाया में बैठकर विश्राम करता है, फिर उसी रफ्तार से चलता है, जबकि उसने कुछ खाया भी नहीं था, पीया भी नहीं था । यह शक्ति कहाँ से आई फिर से चलने की ? आप जब चल रहे थे, तो वीर्यान्तराय कर्म का क्षयोपशम नष्ट हो रहा था। आप बैठ गये, तो जो व्यय होनेवाली शक्ति थी, वह इकट्ठी हो गई, शक्ति बढ़ गई। जो जितना बैठता है, स्थिर रहता है, उतनी शक्ति उसकी इकट्टी होती है, जो ऊपर की ओर ले जाती है । शक्ति को वाष्पित करने की विद्या सीख लो, तो जगत में परम कल्याण बन जाये । बस, जो ज्ञान ज्ञेय में जा रहा था, उस ज्ञान को ज्ञाता में लाओ ।
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