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समय देशना - हिन्दी
१२६ चलना । पूजन-भक्ति से स्वर्ग ही मिल पायेगा, मोक्ष नहीं मिलेगा। पूजन-भक्ति का राग भी जिसका समाप्त हो जायेगा, ऐसा वीतरागी निर्ग्रन्थ तपोधन ही मोक्ष को प्राप्त कर पायेगा।
जैनदर्शन बहुत गहरा है। जिसे आपने धर्म माना है, यह छिलके के पास है। दिख रहा है कि जिस पर छिलका है, उसके अन्दर कुछ है । क्या करूँ? गुठलियाँ चढ़ाना जानते हैं न । सत्यार्थ पूछो तो जितने ज्ञानीजीव बैठे हैं, वे सब भगवान् को गुठलियाँ चढ़ाते हैं। फल चढ़ाते हो नहीं, गुठलियाँ चढ़ाते हो। बादाम का फल कब चढ़ाया आपने? ये बादाम का फल नहीं, शुद्ध गुठली है। वस्तुस्वरूप यहाँ समझना है । आप क्या चढ़ाते हो, वहाँ नहीं जाना है। आपके बच्चे नीम और बेर के झाड़ों को पत्थर मारते होंगे, तो वे नीम की निबोरी और बेर खाते होंगे । पर कर्नाटक के बच्चे काजू-बादाम के झाड़ पर पत्थर मारते हैं और काजूबादाम खाते हैं। बात कुछ और है, समसयार समझना है। आप आम को चूस कर फेंक देते हो। जिसके ऊ पर आम जैसा फल है, उस गुठली के अन्दर बादाम है, वह भी मीठी है। अहो बालक ! तूने समझ लिया था कि जो बादाम पर फल है, दल है, वही शक्तिमान है; पर तुझे मालूम नहीं था। छिलके को उतारकर दल को ही स्वाद मान लिया। पर उसके अन्दर एक कवच था, उसको तोड़ता तो सर्वशक्तिमान बादाम की गिरी थी। वस्त्र उतार लिए, पूजनपाठ का दल मिल गया, लोकपूजा बढ़ गई, पर मोह की गाँठ फूटी नहीं, शुद्धात्मा की गिरी मिले कैसे? बादाम न देखी हो परन्तु आम तो आप सबने देखा है। आम के मौसम में आपने दल खाया और गुठली को फेंक दिया, परन्तु सार तो गुठली के अन्दर ही था । आगामी वृक्ष बनेगा तो उसी गुठली के अन्दर से निकलेगा और आम के खाने पर जो फोड़े होते हैं, वे ठीक होंगे तो गुठली के अन्दर जो गोई (बीज) निकलती है, उसी से होंगे । जो आपने भोगों के आम चूसे हैं, उन फोड़ों को ठीक करना है, तो गिरी को निकालना सीखो। जिसमें है, उसे तो फेंक देते हो। पर आम के दल को जमीन पर बोने से फल नहीं आता। पूरा दल निकाल देने के बाद गुठली को बो दो, पौधा ऊग आयेगा।
विश्वास रखना, व्यवहार धर्म पर लोगों की दृष्टि बहुत ज्यादा टिक चुकी है। क्रियाकलाप में उलझ चुका है जीव । ऐसा काल तेरे देश में आया था, जब वैदिक दर्शन में क्रियाकलाप बढ़ गये थे, लोक दासता को प्राप्त हुए। फिर लोगों ने उपनिषदों की रचना की। क्रियाकाण्ड ज्ञान की प्राप्ति के लिए होता है। यदि क्रिया में ही जीव उलझ जाये, तो ज्ञानशून्यता आती है। विश्वास रखना, एक समय जीव थका-थका महसूस करता है । आप मात्र पाँच मिनट ध्यान करना, उसमें शक्ति मिलेगी और दिनभर वंदना करना, उस शक्ति को देखना, यानी भावों की विशुद्धि को देखना, ये अंदर की बात है। किसी को वंदना की मना नहीं करना, अन्यथा ध्यान लगता नहीं, वंदना और छोड़ देगा। ये तत्त्व की बात है । पर ये ध्रुव सत्य है कि जो शक्ति (विशुद्धि) ध्यान में प्रगट होती है, वह वंदना में नहीं होती, क्योंकि वंदना में योग चलायमान होता है और ध्यान में योग स्थिर होता है। स्थिर योगों से कर्मों की निर्जरा अधिक होती है, और चलायमान योग से निर्जरा कम होती है। ऐसा नहीं करना कि सब छोड़ दो। पर यह ग्रंथ इन सबसे परे है। सुना इसलिए रहा हूँ, कि जो आप कर रहे हो उससे आगे भी कोई वस्तु है। सहज वेदन करो ध्यान का । ज्ञान ही इतने शून्य की ओर ले जाता है, फिर ध्यान कैसा होता होगा ? जो मैं कह रहा हूँ, वह ध्यान नहीं है, ज्ञान है । ध्यान तो और ऊँची वस्तु है । पर आज अज्ञानता तीव्रता से दौड़ रही है, कि म्यूजिक लगा दिये, संगीत भजन शुरू कर दिये, मोमबत्ती जला दी, और कह रहे हो ध्यान करो। किसका ध्यान कर रहे हो? हँस रहे हो, हँसा रहे हो, ये हास्य-कषाय है। कषाय में ध्यान कहाँ, ध्यान में कषाय कहाँ ? चेहरा ही खुश हो पायेगा, पर चित्त गद्गद्
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