Book Title: Samayik Lekh Sangraha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 14
________________ ( ५ ) अधिक से अधिक ४४ (चवालीस) और कम से कम २५ (पच्चीस ) वर्ष तक इन आश्रमों में वे बालक रहते थे। यह वैज्ञानिक अनुभव सिद्ध-सत्य है कि वातावरम का प्रभाव मानव जीवन पर पड़े बिना नहीं रहता। सांसारिक वासनाओं से दूर रहने वाले, प्रकृति की गोद में क्रीड़ा करने वाले, त्यागी-संयमी-गुरुजन की सेवा में लगे रहने वाले, विचार, वाणी और आचरण एक ही प्रकार के रखने वाले गुरुओं का प्रतिदिन सदुपदेश श्रवण करने वाले, उनके पवित्र जीवन से प्रेरणा प्राप्त करने वाले और वर्षों तक-यौवन की घोर घाटी से पार हो जाने तक-ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए एक ही गरु के आदर्श को सामने रखकर, विद्याध्ययन के साथ अपना चरित्र-निर्माण करने वाले, उन भारतीय पालकों, युवकों और वीरों का कैसा चरित्र- निर्माण हुआ करता होगा, यह दिखलाने की आवश्यकता है क्या ? ऐसे आश्रमों में शास्त्र-विद्या और शस्त्र-विद्या दोनों सिखलाई जाती थी। शास्त्र-विद्या, भात्मिकज्ञान के लिए होती थी और शस्त्र-विद्या रक्षण के लिए होती थी। किसी को हानि पहुँचाने के लिए नहीं । कुटुम्ब, देश और आत्मरक्षा का जब-जब प्रसंग ा पड़ता था, तब वे शस्त्र-विद्या का प्रयोग भी करते थे। एक ही गुरु का आदर्श सामने रहने से चरित्र-निर्माण में विभिन्नता भी नहीं होती थी। विद्यापीठ ऐसे आश्रमों से लाभ उठाने के पश्चात् , जो उच्चकोटि की भिन्न २ विषयों की विद्या प्राप्त करना चाहते थे, वे लोग उन विद्यापीठों में सम्मिलित होते थे, जिनका संक्षेप में मैंने उल्लेख ऊपर किया है । माध्यात्मिक, भावना-युक्त, सुन्दर चरित्र-निर्माण होने के बाद, मनुष्य कहीं भी अथवा किसी भी कार्य क्षेत्र में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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