Book Title: Samayik Lekh Sangraha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ किन्तु एक समय था, किसी भी सार्वजनिक कार्य में शासन को सहायता लेना बहुत कम लोग पसन्द करते थे। कारण यह था कि सहायता तो कम मिलती थी किन्तु दखलगिरी ज्यादा होती थी। समय में परिवर्तन हो गया। शासन की उदार नीति के कारण अथवा शासन की नीति अपने सिर पर से बोमा कम करने की होने के कारण वर्तमान शासन ने सहायता के जो उदार नियम बनाये हैं वे प्रशंसनीय हैं। शासन यदि इन नियमों के अनुसार ऐसे सामाजिक कार्यों में सहायता करे, तो शिक्षण का क्षेत्र बहुत अच्छा फलदायक हो सकता है। और इसमें तो सन्देह ही नहीं है कि ऐमी अशासकीय संस्थाओं के द्वारा, शिक्षण प्रचार होने से शिक्षा का हेतु अधिक से अधिक सफल हो सकता है। किन्तु एक बात अनुभव सिद्ध हो रही है कि नियम तो नियम होते हैं किन्तु नियमों को पालने का आधार मानव-स्वभाव पर रहा है। शासन व्यवस्था करने वाले भी मानव हैं। जिनके अधिकार में, जो कार्य शासन ने रखा हो, उनकी उदारता या कृपणता, उनकी सरलता, या कठोरता उनकी भला करने की मनोवृत्ति या बुरा करने की मनोवृत्ति इन बातों के ऊपर सारा दारमदार है और यही कारण है कि शासन की अपार उदार नोति होते हुये भी कभी कभी विना कारण संस्थाओं को वष्ट उठाना पड़ता है। बड़े मनुष्य का बड़प्पन सत्ता से प्रतीत नहीं होता है किन्तु उनके हृदय की विशालता, गुण दृष्टि, सहानुभति और प्रेम से प्रकट होता है। हमारी संस्था में एक एज्यूकेशन डायरेक्टर महोदय पधारे। उन्होंने संस्थाओं के छोटे-बड़े सभी कार्यों का खूब सूक्षमता पूर्वक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130