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( ख ) जो देश अहिंसा की उद्घोषणा करता है. जिस देश में भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध जैसे महापुरुषों ने पणाई. वायाओं वेरमण का अमृत-रस पिलाया है, जिस देश के ऋषियों ने, 'आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न ममाचरेत्' का आदेश दिया है, जिस देश के राष्ट्रपिता ने 'जोबो और जीने दो' का अभी ही ताजा सन्देश सुनाया है, जिम देश में 'चिरंजोयात् चिरंजीयात् देशीयं धर्म-रक्षणात्' का नारा हमेशा से लगता आया है, जिस देश में दूसरे के हित के लिये स्वयं का बलिदान कर देने का पाठ पढ़ाया गया है और जिस देश की देवियों ने अपने प्राणों की अपेक्षा सतीत्व को ही महान समझा है, उम देशकी, मानव समाज की आज की दशा का सूक्ष्मता से निरीक्षण करने वाला क्या यह नहीं कह सकता है कि आज हमारे देश में जो कुछ उपद्रव हो रहे हैं, जो कुछ आपत्ति के बादल छा रहे हैं,वे सब हमारे ही पापों का परिणाम है ? हमारी ही भूलों का नतीजा है ? हमारी हिंसक मनोवृत्तियों का बदला मिल रहा है ? हमारी ही भ्रष्टाचारिता का यह फल है ? हम, भगवान महावीर और बुद्ध, आदि ऋषियों को अहिंसा की दुहाई देते हैं, किन्तु हमारी मनोवृत्तियों में, हमारी वाणी में और हमारे आचरण में कितनी हिंसा भरी हुई है ? इसका कोई विचार करता है क्या ? जहां सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों को हिंसा भी जहां तक हो सके न हो, इतना विचार करने वाली हमारी संस्कृति और कहां बड़े से बड़े और संसार के उपयोगी जीवों का भी संहार करने वाली हमारी मनोवृत्ति ? कहां तो दूसरे के प्राणों की भी आहुति देने को संस्कृति और कहां अपने स्वार्थ के लिये अपने ही समान संसार के अन्य प्राणियों का संहार करने की पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण !
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