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तारीफ तो इस बात की है कि सन् १९२५ में १९६२ मनुष्य जंगली जानवरों ने बाये और सन १९२६ में १९८५ मनष्य खाये, जबकि जिस वर्ष में १३१०० रु. खर्च करके जो २५५०० जंगली जानवरों का संहार किया गया उस वर्ष २२८५ मनुष्यों का संहार जंगली जानवरों से हुपा और १६०६६ मनुष्य सांपों द्वारा मारे गये।
जरा सोचने की बात है, प्रतिवर्ष जैसे-जैसे जंगली जानवरों का संहार अधिक किया गया, वैसे-वैसे उन जंगली जानवरों द्वारा मनुष्यों का संहार अधिकाधिक होता गया । जानवरों को मार कर खुद को बचाने के प्रयोग में इससे अधिक निष्फलता और क्या हो सकती है ? और यहा आंकड़े 'ब्रिटिश गवर्नमेंट' के जमाने के सरकारी आँकड़े हैं,जिसकी प्रामाणिकता में सन्देह करने का कोई अवकाश नहीं है । यह कोई धार्मिक वृत्ति वाले के मनः कल्पित आकड़े नहीं हैं।
वर्तमान समय में हमारा देश स्वतन्त्र हुआ है और उसके शासनाधिकारी सभी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के अनुयायी कहलाते हैं। हमारा देश जैसे अहिंसा प्रधान है, वैसे हमारा शासनाधिकारी अपना शासन राष्ट्रपिता की आज्ञा अनुसार अहिंसा, सत्य, प्रेम की भक्ति पर बड़ा रखना और चलाने का दावा करते हैं । हमारे शासन का प्रतीक भी अहिंसा प्रचारक महाराजा अशोक का प्रतीक रखा गया है, यह सब कुछ होते हुए, अभी अभी बन्दरों के संहार, मच्छियों का उत्पादन आदि बातें जब सुनी जाती हैं, तो बड़ा आघात पहुंचता है। ईश्वर को माने या न माने, किन्तु कुदरत के नियम सबको मानने पड़ते हैं । और बुरे का नतीजा बुरा और भले का भला, यह भी सभी को स्वीकार करना पड़ता है और यह प्रत्यक्ष भी दिखाई देता है। इस अवस्था में हम लोगों को चाहिये कि हमारी संस्कृति को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com