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निद्रा में भंग । जब युक्तिवाद में महाराजा साइन लाजवाब बने, तब कहने लगे, 'भले ही में नर्क में जाऊं ? नरक में तो जावेंगे या न जायेंगे, ईश्वर जाने, किन्तु क्या ऐसे पापों का प्रायश्चित यह नहीं होगा कि ऐसे ऐसे राजाओं के सिंहासन आज जमीनदोस्त बन गये ? दूसरों को त्रास देकर स्वयं सुख प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले वास्तव में गलत रास्ते पर हैं। मानवः अपनी बुद्धि-शक्ति का उपयोग अपने से हीन शक्ति वाले जीवों को सताने और उनका संहार करने में करें, उसका दण्ड राज्य सत्ता भले ही उसे न देती हो, किन्तु कुदरत अवश्य देती है । और कुदरत के शस्त्र वढ़ी हैं, जो ऊपर बतलाये हैं । भूकम्प, बाढ़, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, दुष्काल, रोग, डकैती, अग्निकांड, इत्यादि ।
प्राणियों की प्रकृतियों का अभ्यास करने वाले को मालूम हो सकता है कि, जहाँ जिन जीवों की हिंसा अधिक होती है, वहां उन जीवों की उत्पत्ति भी अधिक होती है। खटमल, मच्छर, साँप, बिच्छू, आदि जीवों को जहाँ जहाँ अधिक मारा जाता है, वहां उसकी उत्पत्ति भो अधिक होती है और उससे मानवजाति को त्रास भी अधिक होता है । सरकार की और से भी जनता के स्वास्थ्य के लिये ऐसे जीवों के मारने की योजनायें की जाती हैं और हजारों लाखों रुपये खर्च भी किये जाते हैं । किन्तु अनुभव यह बताता है कि उन जीवों का संहार करके मानवजाति जितनी सुख प्राप्त करने की इच्छा करती है, उतनी ही उन जीवों की उपद्रव से एवं अन्यान्य निमित्तो अधिकाधिक दुखी होती है । आज सारे देश में कितने रोग फैले, कितना मानव को कष्ट हो रहा है, यह सब किसका परिणाम है ? जहाँ साँप, बिछुओं को नहीं मारते हैं, वहाँ आज सांप बिछू शायद ही कभी देखे जाते हैं और जहाँ मारे जाते हैं, वहां से उनकी
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