________________
( १८७ )
दक्षिणामूर्ति विद्यार्थी भवन ऐमी ऐसी कई प्रसिद्ध संस्थाएं बिजली की चमत्कार की तरह से अस्त हो गई। अभी भी कई ऐसी बड़ी. बड़ी संस्थाएं हैं, जो अफ्रीका आदि देशों में अपने प्रतिनिधियों को भेजकर, सिनेमा नाटकों के शो लेकर, एवं संस्था के लड़के लड़कियों को नचाकर पैसा एकत्रित कर लेती है और किसी प्रकार अपना वार्षिक व्यय पूरा करती हैं।
इमीलिये दानवृत्ति पर चलने वाली संस्थाओं की आय को मैं आकाशवृत्ति की आय कहता हूँ। समय पर अनुकूल वर्षा गिरने पर, काश्तकार फूला नहीं समाता। किन्तु समय पर पानी नहीं आने से, काश्तकार की जो दशा होती है, वही दशा संस्था और संचालकों को भी कभी कभी होती है। मिल जाते हैं, तब हजारों लाखों मिलते हैं और नहीं आते हैं तो चार छः महीने तंगी भी उठानी पड़ती है। इसीलिये मैं इसको आकाशवृत्ति कहता हूं, लेकिन संस्था के निःस्वार्थी संचालकों को न इससे निराशा होती है, न दुःन । ऐमी कठिनाइयों के साथ जो संस्थायें चलाई जाती हैं, मेरा नम्र मन है कि वे अधिक फलदायक भी होती हैं। क्योंकि संचालक रात दिन इसकी प्रगति के लिये प्रयत्नशील रहता है और उसकी भावना भी भरी रहती है कि. मैं अपनी जिन्दगी पर्यन्त प्रगति ही देखता रहूं। मरने के बाद क्या है "पाप मरे सारी डूब गई दुनियां"
४-शासकीय सहायता
ऐसी सामाजिक संस्थाओं को शासन की ओर से सहायता देने के नियम हमेशा से चले आते हैं। समयानुसार इनमें परिवर्तन अवश्य हुआ करता है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com