Book Title: Samayik Lekh Sangraha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 114
________________ ( १०५ नहीं रख सकते । ऐसी संस्थाओं को शासन भी प्रसन्नतापूर्वक महायता करता है और करनी ही चाहिये। इम प्रकार अनेक भव्य उद्देश्यों, भावनाओं और तरीकों से प्रचुर संख्या में सामाजिक शिक्षण संस्थायें स्थापन हुई हैं। १-शिक्षण के हेतु की सफलता अब यह बात प्रसिद्ध और सर्वमान्य हो चुकी है कि शासकीय शिक्षण संस्थाओं की अपेक्षा, ऐसी सामाजिक शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का हेतु अधिक सफल होता है। इसके कई कारण हैं । (१) ऐसी संस्थायें किसी एक या एक से अधिक व्यक्तियों की मनोभावना के विशेष उद्देश्य को लेकर स्थापन होती हैं और इसका संचालन, केवल मशीन की तरह नहीं, किन्तु आवश्यकतानुसार परिवर्तन पूर्वक होता रहता है। (२) इसमें अध्यापकों की पसन्दगी खास विचारपूर्वक की जाती है। (३) ऐसी संस्थाओं में प्रायः छात्रालय अवश्य होते हैं। क्योंकि चरित्र निर्माण के कार्य में छात्रालयों का रखना आवश्यकीय हो जाता है । (४) ऐनी संस्थाओं की व्यवस्था में प्राय: बाधक तत्त्व कम उपस्थित होते हैं। (५) ऐसी संस्थाओं का दैनिक कार्यक्रम और अन्य वातावरण ऐसा उत्पन्न किया जाता है जिससे शिक्षण और चरित्र निर्माण का हेतु सफल होने में बल मिले। ऐसी संस्थानों की आर्थिक स्थिति प्रायः कमजोर होने के कारण से, जैसे व्यय मितव्ययिता से किया जाता है, वैसे गरीब और मध्यम स्थिति के लोगों को जितना हो सकता है उतना विद्यादान देने में बहुत कुछ रियायत दी जाती है, जिससे शिक्षण महंगा भी नहीं पड़ता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130