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अशासकीय शिक्षण संस्थाएं
भारतवर्ष में जो शिक्षण संस्थाएं चल रही हैं, वे दो विभागों में विभक्त की जा सकती हैं:- शासकीय और अशासकीय | शासकीय संस्थाओं की आर्थिक और व्यवस्था सम्बन्धी सभी प्रकार की जवाबदारी शासन के ऊपर रहती है ।
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१ - अशासकीय संस्थाओं के प्रकार अशासकीय संस्थाएं दो प्रकार की पाई जाती हैं:एक निजी और दूसरी केवल परोपकारार्थ चलने वाली । निजी संस्थाएं एक या इससे अधिक व्यक्तियों द्वारा केवल पैसा पैदा करने के लिए चलाई जाती हैं। जैसे अन्य व्यवसायों द्वारा गृहस्थ लोग पैसा पैदा करते हैं, इसी प्रकार यह भी उनका एक व्यवस्थाय है । इसमें अपने कुटुम्ब का पोषण किया जाता हैं । मकान, जमीन, जायदाद, बढ़ाई जाती है किन्तु वह सब अपने निज के लिये । इसके साथ समाज का या शासन का कोई सन्बन्ध नहीं रहता और विद्यार्थियों के शुल्क तथा अन्य जो भी साधन प्राप्त किये जा सकते हैं, उन पर इसके आय-व्यय का आधार रहता है । किन्तु कहीं कहीं ऐसा भी देखा जाता है कि ऐसी निजी स्वार्थी संस्थाएं भी जनता से चन्दा एकत्रित करती हैं और शासन से भी सहायता लेती हैं। ऐसा करने के लिये उन्हें अनेक प्रकार का झूठ और प्रपंच भी करना पड़ता है।
दूसरे प्रकार की, जो केवल परोपकारार्थ चलने वाली संस्थाएं होती है, उनमें कुछ तो ऐसी होती हैं, जो किसी श्रीमन्त
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