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में भयंकर अन्याय और अनर्थ होने के उदाहरण आज संसार में कितने मिल सकते है। हम किसी का भला न कर सके, तो हमारा कम भाग्य किन्तु किसी निर्दोष को नुकसान पहुँचाने का पाप तो हम न करें। यह बात प्रत्येक समझदार व्यक्ति को अपने हृदय में ओत-प्रोत बना लेनी चाहिये । एक साधारण कहावत है 'सौ गुन्हेगार छूट जाय, इसकी हरकत नहीं, किन्तु एक बिना गुन्हेगार हमारे हाथ से दण्डित न हो।" यही सत्ताधारियों का शानपन है, यही उनकी बुद्धिमत्ता है, यही उनका बड़प्पन है।
वर्तमान समय की शासन की सहायता में एक दिक्कत यह भी खड़ी हुई है कि सहायता प्रतिमास नहीं दी जाती। देश की वर्तमान परिस्थिति से कोई अज्ञात नहीं है । व्यापारियों का व्यापार जैसे ठप हुआ है, वैसे उनकी दान वृत्ति भी संकुचित हो गई है। एमी अवस्था में तीन-तीन या छः छः महिनों तक सहायता की रकम का न मिलना, दान वत्ति पर आधार रखने वाली संस्थाओं को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता होगा-यह सब कोई समज सकते हैं।
शासन को इस समय बहुत कुछ बातों का विचार करना है। आज सारे संसार में प्रत्येक प्रकार की महंगाई सीमा का उल्लघन कर चुकी है। वह इतनी बढ़ गई है कि आज के ५०) पचास रुपये, पहिले के २०) ७० के बराबर भी नहीं रहे। परिणामतः वेतन,आदि सभी कार्यों का व्यय भाशातीत बढ़ गया है। तीसरी बात यह है कि पाश्चात्य देशों का अनुकरण करते हुए, बालकों के शारीरिक विकास के जो साधन पहिले अल्प व्यय, बल्कि बिना व्यय के उपलब्ध होते थे और उसमें अपूर्व विकास होता था, उसके बदले में अत्यन्त व्ययसाध्य साधन बन गये हैं । शासन भी ऐसे साधनों का उपयोग करने के लिये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com