________________
( ५५ )
ऐसी बातों में शिक्षण प्रणाली भी एक है। यह संद्भाग्य का चिह्न है कि " वर्तमान शिक्षण प्रणाली में परिवर्तन करने की आवश्यकता है” ऐसे विचार हमारे कुछ नेता प्रकट कर रहे हैं किन्तु उसके लिए जो प्रयत्न करना चाहिए, वह शासन की ओर से नहीं होता । बल्कि कभी-कभी तो इससे विपरीत ही प्रयत्न होता है, अर्थात् ज्यादा खराबियां उत्पन्न करने के प्रयत्न होते हों, ऐसा प्रतिभास होता है ।
1
यह बात आम तौर से कही जाती है, खास करके शासनाधिकारियों की तरफ से भी कही जाती है कि "शासन की तरफ से चलने वाली शिक्षण संस्थाओं में बालक और युवकों के 'चरित्र निर्माण' का कोई प्रयत्न नहीं होता" वे सममते भी हैं कि “शासन की ओर से चलने वाली शिक्षण संस्थाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का कोई नेता नहीं है, कोई गुरु नहीं है, कोई प्रेरक नहीं है । वे चार-पांच घण्टे शिक्षकों के सानिध्य में रहते हैं किन्तु इतने समय में कई शिक्षकों के दर्शन हो जाते हैं । न शिक्षक विद्यार्थियों के प्रति अपना कुछ कर्तव्य समझते हैं, न विद्यार्थी उनको अपना गुरु सम्झते हैं, बल्कि बड़ी आयु के विद्यार्थी तो उनको शासन के एक गुलाम समझते है और अब तो प्रजातन्त्रीय शासन में खुद के भी गुलाम समझते हैं। दूसरी तरफ से कल के ही विद्यार्थी आज शिक्षक हुए हैं, इसलिये जो बुराइयाँ थीं, वे बुराइयाँ दूर करने के पहिले ही शिक्षक बने हैं। इसका परिणाम यह आता है कि एक गुरु की हैसियत से उनके सदाचार का जो प्रभाव पड़ना चाहिये, उससे विपरीत हो पड़ता है । इतने से यह बात सीमित नहीं रहती । शिक्षक पैसों की लालच में आ कर के ट्यूशनों के द्वारा एवं परीक्षा में पास करा देने के सौदे के द्वारा एक प्रकार की विद्यार्थियों में चोरी आदि
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com
FOR