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हमारी शिक्षण संस्थाएं किसी भी देश, राष्ट्र, धर्म, समाज की उन्नति का आधार शिक्षा पर अवलम्बित है। व्यक्ति के जीवन के विकास का
आधार भी शिक्षा है। यही कारण है कि मानव-समाज में शिक्षा की प्रणाली समाज व्यवस्था के साथ ही प्रर्चालत हुई। परिवर्तनशील संसार के नियमानुसार समय-समय पर शिक्षणप्रणाली में परिवर्तन होता रहा किन्तु शिक्षण का हेतु तो एक ही रहा।
समाज और शामन इन दोनों का ऐसा घनिष्ठ सम्बन्ध है कि एक दूसरे का प्रभाव एक दूसरे के ऊपर पड़े बिना नहीं रहता । खास करके शासन का प्रभाव तो समाज के ऊपर अवश्य पड़ता है। जिस समय जिसका शासन होता है, उस समय उसकी संस्कृति, रीति व रिवाज, भाषा, रहन-सहन, सभी का प्रभाव समाज पर पड़ता है। यही कारण है कि आज देश की प्रांतीय-भाषाओं में इतना मिश्रण हो गया है कि एक प्रांत की शुद्ध-भाषा के शब्द उसमें कितने हैं और अन्य भाषा के कितने हैं, यह निकालना मुश्किल हो गया है।
इसी प्रकार शिक्षण का प्रभाव भी समय-समय पर पड़ा। सबसे अन्तिम समय अगरेजी-शासन का पाया, जो हमारे ही सामने गुजर चका है । हमारी भारतीय शिक्षण-प्रसाली और अगरेजों की शिक्षा प्रणाली में कितना अन्तर था, यह दिखलाने की आवश्यकता नहीं। 'शिक्षण का हेतु जीवन विकास' यह मैं ऊपर बता चुका हूँ । हेतु एक रहते हुए भी, अंग्रेजी शिक्षण
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