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( ८३ ) का काम करने वालों से उपदेशक का कान लीजिये। अच्छे विद्वान साहित्यकारों से साहित्य प्रचार का काम लीजिये । शासन को उनके निमित्त कोई खर्च नहीं करना पड़ता । जो काम दो हजार या पाँच हजार की वेतन पाने वाला लोभी, मोही, स्वार्थी, गृहस्थ नहीं कर सकता है, वह काम निलोभी, निस्पृह, त्यागी साध मात्र समाज में से रोटी के दो टुकड़े मांग कर उदर निर्वाह करके कर सकेगा। उन्हें न रहने को महल चाहिये न मौज उड़ाने को मोटर चाहिये न पैसा चाहिये।
जरूरत है ऐसी शक्तियों का संग्रह करने की जरूरत है ऐसी शक्तियों को एकत्रित करने की । मेरा विश्वास है कि आज भी हिन्दुस्तान में ऐमी हजारों नहीं लाखों शक्तियाँ हैं। ऐसी शक्तियों का ऐसे साधु संतों का संगठन करके उनके द्वारा अपराध रोकथाम का कार्य किया जाय तो कितना काम हो सकता है, भारतोय मनुष्यों का बीवन स्तर कितना ऊँचा हो सकता है। किन्तु यह दुःख और दुर्भाग्य की बात है कि इस वास्तविक उपाय की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता । अन्त में अपराध रोकथाम का जो आन्दोलन मध्यभारत शासन ने प्रारम्भ किया है इसलिये शासन को और इस अान्दोलन के अध्यक्ष श्रीमान् रिसालसिंह जी महोदय को मैं अन्तःकरण से धन्यवाद देता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि इस आन्दोलन में सफलता प्राप्त करने की शक्ति प्रभु उनको दें।
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