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( ८५ ) आश्चर्य की कोई बात नहीं। परन्तु जैसा कि में ऊपर कह चका हूं, किसी का जुल्म, किसी का मद हमेशा पनपता नहीं।
जबलों पूरवल पुण्य की पूजी नहीं करार । तबलो सब कुछ माफ है अवगुण करो हजार ।।
आखिर उसका भी खात्मा कुदरत करती ही है । परन्तु जिस समय जिस को उन्नति का सूर्य मध्याह्न काल में पहुँचता है, उस समय उससे नीचे गिरने वालों को देख कर उसका मजाक उड़ाता है। अपनी सत्ता-श्रीमंताई में मदमस्त होकर दाँत निकालता है। किंतु जब उसे मालूम होता है कि हमारे बद्धिजीवी महानुभावों को हमारी प्राचीन लोकोक्ति मानो याद आई
जोको महानुभावान जब उसे मालमताई में मदर
पीपल पान खरता हसतां कूपलियां ।
मुमबीती तुम बीत से घीरांवलियां ॥ सूखे हुए पीपल के पत्ते को नीचे गिरते देख कर वक्ष पर की कोपल नयी पतिमा हंस रहो है परन्तु गिरने वाले पत्ते कह रहे हैं, इसो, खूब हंसो, परन्तु जरा धीरज रखना जो दशा हमारी हुई है, वह कल तुम्हारी होने वाले है। ____ संसार का इतिहास इसका साथी हैं । यह परम्परा हमेशा से चली आती है।
परन्तु अब जमाना पलटा है। हमारे बुद्धिजीवी महानुभाव भी अब यह समझने लगे हैं कि हम चाहे कितने ही पढ़े लिखे हों, परन्तु केवल दवात-लम के सहारे मानव-जीवन पर पता पलाने का समय अब नहीं रहा। अब तो हमें भी कुछ न कुछ श्रमकरना अनिवार्य हो जाता है। चाहे वह श्रम किसी भी प्रकार
का स्वपर हित का करें, किन्तु करना जरूरी है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com