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स्वतंत्रता और सुतन्त्रता
आज भारत की स्वतन्त्रता का दिन है। मेरे ख्याल से इसको दिन नहीं कहना चाहिये, त्योहार या पर्व कहना चाहिये और इसका उत्पत्र भी एक पक्षीय नहीं, सार्वजनिक त्यौहार के रूप में मनाया जाना चाहिए । भारतवर्ष की भिन्न भिन्न जातियों
और भिन्न भिन्न धर्मों में अनेक त्यौहार दीर्घकाल से मनाये जारहे हैं। उन त्यौहारों की अपेक्षा आज के त्यौहार में विशेषता है। वे त्यौहार भिन्न भिन्न जानियों और धर्मों में अपने अपने विभाग में ही मनाये जाते हैं, किन्तु आज का ही एक ऐसा पर्व है जिसका सम्बन्ध न जातियों के साथ है न धर्मों के साथ । भारत के प्रत्येक व्यक्ति के लिये आज का दिन बड़े महत्व का है। आज के पर्व में आबाल-बद्ध समस्त लोगों को उत्साह और हर्ष से भाग लेना चाहिये। जनता की अज्ञानता के कारण स्वतन्त्रता के महत्व को हम कम समझे हैं। सोने के पिंजड़े में भी रक्खा हुआ तोता जब पिंजड़े के बन्धन से मुक्त होता है, उस समय उसके प्रानन्द की कोई सीमा नहीं रहती । माता पिता से विरही एक निर्दोष गु-हेगार जव जेल की यातनाओं से मुक्त हो जाता है, उस समय उसके हर्ष का पार नहीं रहता। स्वतन्त्रता का यह स्वभाव है, आजादी का यह परिणाम है; क्योंकि बन्धन ही दुःख है और बन्धन से मुक्त होना ही दुःख से मुक्त होना है। सदियों से हमारा देश परतन्त्रता के दुःखों को भोगता आया है। उन दुःखों से अब हमारे देश की मुक्ति हुई है । स्वतन्त्रता वह चीज है, जिस तंत्र का संचालन हमारे खुद के हाथ में हो। दूसरे का मुंह ताकना न पड़े, दूसरे से
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