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( ९२ ) हमारी स्वार्थान्धता ने इन तीन वर्षों में देश को बहुत नुकसान पहुँचाया। आज हमारे देश में अन्न और वस्त्र की समस्या अभी तक हल नहीं हुई है और देशवामियों की कष्ट उठाना पड़ रहा है । इस भ्रष्टाचार को भी मैं एक कारण समझता हूं । सच बात यह कि जिन लोगों के उपर देश-रक्षा की, देश की उन्नति की जवाबदारी है, उन्हें अपने जीवन को शुद्ध रख करके कार्य करना चाहिए। वही मनुष्य दूसरों को कहने का अधिकारी है, जो स्वयं प्राचारण में लाता है।
भारतवर्ष में नैतिक स्तर कितना गिर गया है, यह दिखलाने की यावश्यकता है क्या ? अाज नैतिक स्तर गिर जाने का मुख्य कारण मेरी समझ से हमारे देश में जड़वाद का प्रचार होना है। पाश्चात्य लोगों के सहवास से हमाग देश जड़प्रायः घन गया है। हमारे हृदयों में से धार्मिक भावनाएँ नष्ट हो गई हैं। धर्म से मेरा मतलब सम्प्रदाय या क्रियाकाण्ड से नहीं है। मेरी धर्म की व्याख्या है, 'अन्तःकरण शुद्धित्वं धर्मत्व' हृदय का पवित्र होना धर्म है, इस प्रकार की धार्मिक भावना हमारे हृदयों में न होगी, तब तक लोभ, स्वार्थ, क रता, निर्दयता आदि से हम दूर नहीं हो सकते और जब तक हमारे ये दुगुण दूर न हों, तब तक हमारा नैतिक स्तर ऊंचा नहीं हो सकता, नैतिक स्तर के ऊंचे ज्ञाने की और भारतीय संस्कृति की हम बातें भले ही करें । भारतवर्ष परतन्त्रता से मुक्त होकर स्वतन्त्र बना, किन्तु स्वतन्त्रता सुखदायी नहीं हो सकती है जब तक कि उसमें सुतन्त्रता की सुगन्धी न मिले । स्वतन्त्रता स्वच्छन्दता बन सकती है और आजकल प्रायः बन रही है। इसलिये सतन्त्रता की बड़ी आवश्यकता है । स्वच्छन्दता का ही परिणाम
है कि आज के युवक बहुधा अपने गुरुओं, माता पितात्रों आदि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com