________________
( ६३ )
I
बड़ों की मर्यादा नहीं रखते । उसमें थोड़ासा एक और भी कारण मैं समझ रहा हूं। शिक्षक और माता पिताओं को जिस मर्यादा के साथ अपने विद्यार्थियों और बच्चों के प्रति रहना चाहिये, वे उस मर्यादा से नहीं रहते। उन्हें भी अपनी अपनी मर्यादा को संभाल करके ही व्यवहार रखना चाहिये। लेकिन इन सारी बातों का परिणाम तो मैं आज कल की हवा को ही समझ रहा हूं । द परे शब्दों में मैं उसको स्वच्छन्दता कहता हूं ।
हमारी धार्मिक भावनाएँ नष्ट होने से हमारा पश्चिम का अनुकररम मुख्य कार रम है । दुःख तो इस बात का ज्यादा है कि जिस बात से हमारा, हमारे बालकों का, हमारे युवकों का और यूं कहना चाहिये कि हमारे बड़े लोगों का भी नैतिक स्तर नीचे गिर गया है और गिरता जारहा है, उन्हीं बातों को हम उत्तेजन दे रहे हैं। कौन नहीं जानता है कि सिनेमाओं ने हमारे युवकों का जीवन नष्ट किया है, कौन नहीं जानता है कि हमारी बहन बेटियों की मर्यादाओं का नाश इन सिनेमा ने किया है । चोरी, डकैती, दुराचार, शराबखोरी ये बातें अच्छे २ कुलोत्पन्न लोग भी कहां से सीखें ? मुझे अगर करने की छूट मिलती हो और मैं अपने देश की सरकार से सिफारिश करने का अधिकार रखता हूं तो मैं जोर से कहूंगा कि सत्र से पहिले हिन्दुस्तान के सब सिनेमाओं की दीवाले तुड़वा देनी चाहिये । यह कहा जाता है कि सिनेमा के द्वारा शिक्षा का प्रचार अच्छा हो सकता है । मुझे मालूम नहीं कि किम शिक्षा का प्रचार अच्छा हो सकता है। अभी तक सिनेमाओं से जो शिक्षा मिली वह तो प्रत्यक्ष है और देश - कल्याण की, मानव-कल्यास की अगर शिक्षा का प्रचार सिनेमा के द्वारा हो सकता है तो इसका विरोध कोई नहीं
कर सकता ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com