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प्रार्थना करनी न पड़े, दूसरे के सामने हाथ पसारना न पड़े, इसका नाम है स्वतंत्रता |
हमारे देश की राज्य व्यवस्था दूसरों के हाथ में रही, हमारे यहां का शिक्षण दूसरों के हाथ में रहा, यहां की संस्कृति दूसरों के हाथ में रही, आर्थिक व्यवस्था दूसरों के हाथ में रही और हमारी बहन बेटियों की रक्षा भी दूसरों के हाथ में रही । गोया भारत का सर्वश्व दूसरों के हाथ में रहा । लेकिन देश के सद्भाग्य से महात्मा गांधी जी, पं० नेहरू जी तथा अन्य महानुभावों के प्रयत्न से अब देश स्वतन्त्र हुआ है, दूसरों का बन्धन टूट गया है, गुलामी से भारत मुक्त हो गया है और सारे देश की व्यवस्था, शिक्षा, संस्कृति, आर्थिक व्यवस्था, संरक्षण आदि सारी बातें भारतमाता के सुपुत्रों के अधीन आई है किन्तु इस स्वतन्त्रता का स्वाद हमें जैसा मिलना चाहिये वैसा नहीं मिल रहा है । यह बात सभी स्त्रीकार करते हैं, चोटी के नेता भी; किन्तु हमें इस बात का भी विचार करना आवश्यक है कि स्वतन्त्रता को प्राप्त हुए अभी ३ साल हुए हैं। कार्यकर्त्ताओं को इन तीन वर्षों में अनेक आपत्तियों का सामना करना पड़ा है और सारे देश की नई व्यवस्था जमाई जाने के कारण स्वतन्त्रता का स्वाद समस्त जनता को अनुभव करने का मौका मिले, यह स्वाभाविक है ।
दूसरी तरफ अवसरवादी व्यापारियों और कुछ अधिकारियों ने भी अपनी लोभवत्ति का पूरा पूरा परिचय दिया है । हमारे ही भाई बहन भूखों मरें, नंगे रहें, इसकी हमें कोई दरकार नहीं। ऐसा अवसर फिर कहाँ माने को था, ऐसा समझने वालों में भ्रष्टाचार खूब बढ़ा और अभी भी चल रहा है | तारीफ तो इस बात की रही और हो रही हैं कि एक व्यापारी दूसरे व्यापारी के भ्रष्टाचार को छिपा रहा है और दूसरा पहिले के ।
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