Book Title: Samayik Lekh Sangraha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 96
________________ किपी भाई से पूछिये 'क्यों क्या बात है ? ये सब महानभाव चप क्यों है, अपना काम क्यों नहीं करते ?' वे जवाब दंगे। फोटोग्राफर अभी आया नहीं है । मोटर लेने गयी है।' _ 'क्या ये महानुभाव इम मारे खेतों में से आधी का उन्मूलन करेंगे ? नहीं जी, सिर्फ फोटोग्राफर फोटो ले, इतनी ही देर गेंती हाथ में रहेगी और कमर से झुके रहेंगे।' सोचिये, क्या मानव जीवन में किसी भी चीज के श्रादर्श खड़ा करने के लिये, इन बातों की आवश्यकता है ? क्या क्षण भर का शौक करने से जगत हमारे आदर्श का आदर करता है ? क्या श्रमजीवी और बुद्धिजीवी सभीकी बुद्धि इतनी कुंठित होती है कि जिससे वे ढोंग और वास्तविकता को न पहिचान सके ? क्या यह इसका परिणाम नहीं होगा कि हमारी समस्त भाषण श्रेणियों और समस्त प्रवृत्तियाँ प्रायः निष्फल सी होती हैं। बहुरूपी, 'बहुरूपी' है ऐसा ज्ञान होने पर, बहुरूपी के किसी भी स्वांग का क्या महत्व रह जाता है। साधु नहीं परन्तु साधुके वेष में कोई धूत है, यह मालूम होने पर उसके प्रति साधु की कौन श्रद्धा कर सकता है। मैं यहाँ एक और उदाहरण देना चाहता हूं। अभी कुछ दिन हुए शिवपुरी के सर्किल रोड से मैं आश्रम में पा रहा था। मेरे साथ में एक विद्यार्थी था। मैंने सड़क के किनारे एक खेत में एक काश्तकार को देखा, जो धोती का लंगोट मार कर गेती से गड्डा खोद रहा था। गरमी पड़ रही थी। शरीर खुल्ला था। सिर से बदन पर पसीने की धाराएं छट रही थीं। थोड़ा मैं आगे निकल आया, तो विद्यार्थी ने मेरा ध्यान स्वींचा 'आपको नमस्कार कर रहे हैं। काश्तकार को नमस्कार करने की सूझो ! मैंने आशीर्वाद देकर पूछा कौन ? मैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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