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बुद्धिजीवी और श्रमजीवी
सारे संसार में वुद्धिजीवी और श्रमजीवियों का एक संघर्ष चल रहा है । श्रमजीवी श्रमद्वावरा अपना गुजारा करें या न करें, किन्तु दूसरे लोग तो उनका अवश्य लाभ उठाते हैं। बल्कि हिन्दुस्थान में तो श्रमजीवियों के ऊपर ही सारा देश गुजारा कर रहा है। बुद्धिजीवी बुद्धि के बल पर समस्त मानव समाज पर अपना आधिपत्य भोगते रहे हैं। इतना ही नहीं, बुद्धिजीवी मानव जाति पर अपने आधिपत्य का इतना प्रांतक जमाये रहे कि श्रमजीवीओं का जीवन ही मानो जीवन नहीं, किंतु पशु जीवन है; परन्तु संसार के किसी भी जुल्म को सब कोई सहन कर सकते हैं, केवल कुदरत ही एक ऐसी है, जो सहन नहीं कर सकती । इतिहास के पुष्ठ इसके साक्षी हैं। किस शासक के जुल्म को कुदरत ने सहन किया ? किस सत्ता को कुदरत ने हमेशा कायम रहने दिया ? किस श्रीमंताई के मद को कुदरत ने चूर चूर नहीं किया ? किस के गर्व को कुदरत ने फूलने फलने दिया ? जिस प्रजा पर बुद्धिजीवी शासन करते हैं, उस प्रजा के हित का ख्याल न रखते हुए, केवल अपनी स्वार्थसिद्धि में बुद्धि का उपयोग करना, यह प्रजा के प्रति अत्याचार नहीं तो क्या है ? और उस अत्याचार को कुदरत ने कभी सहन नहीं किया ।
इस प्रकार बुद्धिजीवी, श्रमजीवियों की अज्ञानता का लाभ उठाते है। इसी 'बुद्धिजीवी समाज ने पूजीवाद' और 'सत्तावाद' की उत्पत्ति की है। और जहां 'मचावाद' और 'पूंजीवाद' का एकीकरण होता है, वहाँ श्रमजीविओं का खात्मा हो, इसमें
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