Book Title: Samayik Lekh Sangraha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 90
________________ ८१ } इस प्रवृत्ति में दो तीन बातें खास करके ध्यान में रखने की हैं । १- अपराध करने वाले मनुष्य अपराधों की रोकथाम नहीं कर सकते | जो लोग रिश्वत लेते हों, जो एक या दूसरी तरह से लोगों को सताते हों, लोभ लालच में पड़ कर उल्टा-पुल्टा कार्य करते हों, ऐसे मनुष्य इस वृत्ति में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते । २ - अपराध करने वाले मनुष्यों की मनोविज्ञान की दृष्टि से परीक्षा करना अति आवश्यक है । भयंकर से भयंकर खूनों का और डकैतियों का काम करने वाले अपराधी समय आने पर ऐसे आदर्श मनुष्य बन जाते हैं कि जिनको लोग देव की उपमा देते हैं । भयंकर पापियों के दिलों में भी छिपी हुई दया, करुणा और प्रेम वात्सल्य की मात्रायें रहती हैं । उनको ढूंढ़ निकालने का मनोविज्ञान जिस मनुष्य के पास है वह ऐसे महापापियों को भी देव बना कर जनता के सामने खड़ा करता है । ऐसे पापियों का उद्धार तभी हो सकता है जब कि उसका उद्धार करने वाला स्वयं' निर्दोष हो और उस पापी को निर्भयता प्राप्त हो । बहुत से पापी इसलिये भी पापों को नहीं छोड़ते हैं क्योंकि उनको यह भव रहता है कि मैं अगर इस बन्धे को छोड़ दूंगा तो मुझे समाज और शासन अधिक से अधिक जो हो सकती है सजा करेगा। हालांकि, अति पापों से उनके हृदय श्रति दुःखी रहते हैं और यह भावना जागृति होती है कि मैं ईश्वर के आगे क्या जवाब दूंगा ? ऐसे उदाहरस शास्त्रों में अनेक मिलते हैं । जैन शास्त्रों में एक कथन है “जै कम्मे सूरा, तै वम्मे सूरा," जो कर्म करने में शूर वीर होता है, वह धर्म करने में शूर वीर होता है । शक्ति शक्ति है । शक्ति का दुरुपयोग करके मनुष्य महापुरुष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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