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अपराधों की रोकथाम
अनादिकाल से मानव जाति अपराधों को करती आई है। जैसे सज्जनता और दुजनता, सुख और दुःख, सत्य और अमत्य, हिंसा और अहिंमा अनादिकाल से चले आये हैं वैसे अपराध और निरापराध भी अनादिकाल के साथ ही साथ चले आये हैं । तत्वदृष्टि से देखा जाय तो संसार के प्राणियों में अपराध करने वाले प्राणी एक मात्र मनुष्य हैं । पशु और पंक्षी आराम नहीं करते, भूल नहीं करेंगे। अपनी प्रकृति के विरुद्ध कार्य नहीं करते । उनको अपराधो मान कर मानव जाति उनके ऊपर अत्याचार करती है। कर और हिंसक समझे जाने वाले शेर, सांप, बिच्छू आदि जानवर भी मानव जाति का अपराध करना तो दूर रहा वे मानव जाति को भयंकर प्राणी समझ कर उनसे दूर रहते हैं। छिपे रहते हैं। और आवश्यकता को छोड़ कर वे कभी किसी के ऊपर आक्रमण नहीं करते । मानव जाति को बुद्धि मिली है। बुद्धि के बल पर शस्त्रास्त्र तैयार किये हैं और उनका उपयोग अपनी लोभ वृत्ति, विषय वृत्ति, इन्द्रिय लोलुपता एवं शौक को पूरा कर ने में किया। वह उस समय भूल गया कि में अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहा हूं।
लेकिन मानव जाति को उसके अपराधों का दण्ड भी कुदरत ने साथ हो साथ देना शुरू किया। इसीलिये तो एक विद्वान का कथन है, अपराध और दण्ड साथ ही साथ रहता है।
देखा जाय तो हिंसक प्रारमो भी आवश्यकता को छोड़कर हिसा नहीं करते । किन्तु मानव जाति हो एक ऐसी जाति है जिसको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com