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भी किसी से अज्ञात नहीं है। जनता के जाहिर उत्सवों में युवा छोकरिये का कला के नाम से कितना बीभत्स प्रदर्शन किया जाता है और इसका कितना बुरा परिणाम आरहा है। इससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है ।
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इस प्रकार हमारी संस्कृति का नाश और गृहस्थ आश्रम, मानवता का पतन घोर पतन सभी आंखों से देखते हुए भी, पतनों के साधनों का प्रचार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है । यह हमारे देश के दुर्भाग्य की परम निशानी है और यह दुर्भाग्य विशेष रूप से इसलिए समझ रहे है कि विदेशी शासन काल में इसका प्रचार जितना नहीं हुआ था, उससे कई गुना अब ज्यादा हो रहा है ।
मनुष्य मानसिक कमजोरी के कारण गलती करता है, किन्तु गलती को गलती समझने वाला उस गलती से कभी दूर हो सकता है । किन्तु गलती को गलती नहीं समझ करके, उन चीजों को अच्छा समझने वाला मनुष्य उससे दूर नहीं हो सकता बल्कि अधिक से अधिक उसका प्रचार ही करता है । प्रायः यह दशा हमारे देश की संस्कृति के रक्षण और अरक्षण में भी हो रही है। जो लोग पाश्चात्य संस्कृति में पले-पोसे हैं वे उसके अनुसार अपनी भावनाओं का प्रचार करते हैं । किन्तु यद्द भारतीय संस्कृति के लिये विघात है, यह बात वे लोग समझते ' हैं ।
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होना यह चाहिये कि हमें अपनी संस्कृति के ऊपर उसके अनुसार अपना ध्यान देकर रहन, सहन, खान, पान, शिक्षा प्रणाली, सब प्रकार आचार विचार रखना चाहिये। इसी से देश सुख समृद्धि एवं आध्यात्मिक भावना युक्त बलशाली बन सकता है ।
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