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आगे बोलू क्यों बोलू ? यही विचार मेरे मस्तिष्क में दौड़ने लगे, गुरु-देव का स्मरण कर और मारी शक्तियों को एकत्रित कर, मैं खड़ा हुआ । मेरी पद्धति के अनुमार मंगलाचरण में पूरा ही नहीं कर पाया कि कोलाहल शुरू हुआ। वही सीटियां,वही हूँ हां, वही बूट का पटकना आदि होने लगा । मैं चुप रहा, करीब ५-७ मिनट मंच के अगले भाग पर टहलता रहा, एक अक्षर भी न बोला। थोड़ी देर में सारे हाल में सन्नाटा छा गया, एक भी
आवाज नहीं, सब लोग चुप हो गये, मैंने धीरे से कहा कि आप चुप क्यों हो गये ? आप अपनी क्रिया चालू रखिये, मैं तो सीखने आया हूँ, पढ़ने को आया हूं, मैट्रिक, इंटर, बी० ए०, एम० ए० होने तक जो कुछ आप पढ़े हों, मुझे पढ़ाइये, आपकी विद्या का मुझे परिचय कराइये, आपकी शक्तियों का मुझे पानी दिखलाइये. आपने मानवता और संस्कृति के संस्कार अपने जीवन में कितने उतारे हैं, यह दिखाइये, मैं कुछ कहना नहीं चाहता, आप जैसे विद्वानों की विद्वत्ता का लाभ उठाने पाया हूँ। गुरुदेव ने मेरे हृदय की करुणा का प्रभाव उन विद्यार्थियों के ऊपर डाला, सब चुप हो गये । सभा में से आवाजें उठी, 'श्राप अपना व्याख्यान शुरू करिये, हम शांति के साथ सुनने को तैयार है," सवा:घण्टे तक मैं बोलता रहा, एक भी आवाज नहीं उठी, बहुत से लोग अपनी डायरियां निकाल कर नोट करने लगे, व्याख्यान की समाप्ति के बाद और व्याख्यानों की मांग की। अस्तु ।
मैं यहां कहना चाहता हूं कि बिना प्रयोजन मेरे जैसे एक साधु का, जो उनका अतिथि होकर गया था, अपमान करने में उवित अनुचित का कोई ख्याल उनको नहीं था, कभी कभी वर्तमान पत्रों में पढ़ कर अत्यन्त दुख होता है कि किसी एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com