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थियों में फैला है और न युवकों में, यह जहर कहाँ नहीं देखा जाता ? किसी अधिकारी के दफ्तर में जाइये, किसी स्टेशन पर चले जाइये, किसी व्यापारी की दुकान पर चले जाइये, सेवा की मूर्ति बनकर देश सेवा के भाषण देने वाले किसी नेता के पास चले जाइये, शायद ही किसी के व्यवहार में आप सभ्यता या मीठेपन का अनुभव करेंगे । जहाँ देखो वहाँ तुनक मिजाजी, अभिमान, उच्छृ ंखलता पायेंगे। नम्रता, विनय, सभ्यता शायद ही कहीं देखने में आयगी । कल गलियों में और बाजारों में भटकने वाला मनुष्य, जिसकी कोई कीमत नहीं थी आज कुर्सी पर नेतागिरी के पोषाक में किसी से मीठी भाषा बोलेगा नहीं । इसलिये मेरा नम्र मत है कि देश के मानव समाज में से, इस दुर्गा को दूर करने के लिए हमारी शिक्षण प्रणाली में सबसे पहिले परिवर्तन करने की आवश्यकता है । प्राचीन और नवीनता के मिश्रण पूर्वक जैसे शिक्षण प्रणाली निर्माण करने की जरूरत है, वैसे कोरा शिक्षण हमारे जीवन के लिए घातक है। सभी को हमारे चरित्र निर्माण की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। सिनेमा, सह शिक्षण, बीभत्स चित्र शृंगारिक उपन्यास, आदि जो जो वस्तुयें हमारे चरित्र का पतन करने वाली है, हमारी संस्कृति का ध्वंस करने वाली है, ऐसी बातों को सर्वथा और जल्दी में बन्द कर देना जरूरी है।
इसके अतिरिक्त, जो जो संस्थाएं इस प्रकार के चरित्र निर्माण पूर्वक प्राचीन और नवीनता के मिश्रण के साथ शिक्षण का कार्य परोपकारार्थ चलाती हों, जिनमें किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों का निज स्वार्थ न हो, ऐसी संस्थाओं को अधिक से अधिक सहायता देकर अति पुष्ट और विकसित बनाने में शासन और जनता ने भी सहायता करनी चाहिये। क्योंकि
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