Book Title: Samayik Lekh Sangraha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ ( ५४ ) प्रमाली ने हमारी संस्कृति से हमको बहुत दूर हटा दिया। शिक्षण-प्रणाली का प्रभाव जीवन के ऊपर पड़े बिना नहीं रहता। यही कारण है कि अंग्रेजी शिक्षण-प्रणाली ने, हमारे जीवन को सादगी का स्थान साहबी को दिया। बड़ों के प्रति पूज्य बुद्धि का स्थान अश्रद्धा को दिया । पाप, पुण्य, ईश्वर की भावना का स्थान नास्तिकता को दिया । आध्यात्मिक-भावनाओं का स्थान जड़वाद को दिया । नम्रता का स्थान उच्छृङ्खलता को दिया। अहिंसकवृत्ति का स्थान हिंसकवृत्ति को दिया। परोपकार का स्थान स्वार्थान्धता में परिणित किया । देव, गुरू, धर्म के प्रति हमारी जो श्रद्धा थी, वह श्रद्धा मिटा दी। सक्षेप में कहा जाय तो “सा विद्या या विमुक्तये" "मातृ देवोभव" "पितृ देवोभव", "आचार्य देवो भव", "अतिथि देवो भव", "धम चर", "सत्यंबद" इत्यादि शिक्षण के परिणामों से हमें सदा वंचित ही कर दिया। उपर्युक्त परिणाम को महात्मा गांधी ने अच्छी तरह से समझ लिया था। और इसीलिए वे आखरी दम तक इसकी तरफ जनता का भौर नेताओं का ध्यान आकर्षित करते रहे। किन्तु अङ्गरेजों की दी हुई देन के जो वारसदार बने हैं उनको महात्मा जी की ये बातें, शायद गले में नहीं उतरीं। और यही कारण है कि अगरेजों के जाने पर भी हमारा साहबी ठाठ, हमारी हिंसकवृत्ति, हमारी अगरेजी भाषा का मोह आदि ज्यों का त्यों बना रहा है। किसी बात में, किसी अंश में बाह्य परिवर्तन देखा भी जाता है किन्तु जीवन की गहराई में अगरेजों ने जो संस्कार हमें ओत-प्रोत कर दिए हैं, वे तो हमसे दूर नहीं होने। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130