Book Title: Samayik Lekh Sangraha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 70
________________ शिक्षा-संस्थाओं में भी यह अनुकूलता करनी ही पड़ती है। जैसे फारेस्ट स्कूल, व्हेटरनरी स्कूल, टीचर्स ट्रेनिङ्ग स्कूल आदि । (४) ऐसी स्वतन्त्र संस्थाओं की शिक्षण-प्रणाली में भी दूषित वातावरम का अभाव होता है। (५) अक्सर ऐसी संस्थानों में शिक्षक भी वे ही जाते हैं या रखे जाते हैं जो अपनी जवाबदारी का कुछ ख्याल रखते हों। (६) विद्यार्थियों की दिनचर्या भी खास विशेषता रखती इत्यादि कई कारण हैं, जिन कारणों से विद्यार्थियों का 'चरित्र-निर्माण' आसान हो जाता है। शिक्षण यह शिरम है, जिससे मनुष्य अपना 'चरित्रनिर्माण करे । यह सिद्धान्त यदि सही है, तो जैसा कि श्री मुन्शी ने कहा है-भारतवर्ष में ऐसी संस्थाओं को अति आवश्यकता है। ऐसो स्वतन्त्र शिक्षण-संस्थाओं के भी दो प्रकार हैं, कुछ ऐसी संस्थाएं स्थापित होती हैं, जो होती हैं एक या दो व्यक्ति को भावनाओं से, किन्तु स्थापन करने वालों का प्रधान लक्ष्य निजी स्वार्थ साधने का होता है, केवल पैसा पैदा करने का होता है। अर्थात् ऐसे नोग अन्य वसायों द्वारा प्रायः अपने-अपने स्वार्थ से निधी सम्पत्ति को बढ़ाते हुए कार्य करते हैं। उसी प्रकार संस्थाओं के द्वारा निजी सम्पत्ति बढ़ाने का एक लक्ष्य होता है। प्रायः देखा गया है कि ऐसी स्वार्थ-साधक-संस्थानों के नेता उन बालकों के 'चरित्र-निर्माम' पर कोई ध्यान नहीं देते। वे यह दिखा कर जनता को और शासकों को प्रसन्न कर पैसा बटोरते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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