Book Title: Samayik Lekh Sangraha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 43
________________ ( ३४ ) अभी अभी मच्छी के उत्पादन की ओर हमारे राज्याधिकारियों को प्रवृत्ति बढ़ती हुई नजर आती है । । अन्न के उत्पादन के प्रयोग में जितने हिंसा जन्य प्रयोग किये जाने लगे, उतनी ही उसमें असफलता प्राप्त हुई । इतना ही नहीं, 'तीन सांधे और तेरह टूटे' वाली कहावत के अनुसार, दिन प्रतिदिन अधिकाधिक संकट आता हो जाता है । अब उसमें जब हाथ नीचे गिरते जा रहे हैं, तब मच्छी का उत्पादन बढ़ाने की नौबत आई । किन्तु यह भूला जाता है कि, मच्छी के उत्पादन से होने वाली हिंसा का क्या प्रतिफल हमें भोगना पड़ेगा ? हिंसा का प्रतिफल सुख न कभी हुआ है, और न कभी होगा । ईश्वर को न मानने वाले भी, प्रकृति के नियमों को तो अवश्य मानते हैं । प्रकृति का प्रयोग मानव जाति के ऊपर क्यों बढ़ता जारहा है, इसका विचार उन महानुभावों को नहीं आता है, जो सत्ता, शक्ति और दुनियादारी के 'ऐश आराम में मस्त रहते हैं, किन्तु जगत में जो प्रत्यक्ष हो रहा है, वह आंखों वाले देखते हैं, हृदय वाले सोचते हैं, और बुद्धि वाले स्वीकार करते हैं कि, प्रकृति के इस प्रकोप में हमारी गलती ही कारण है । 'दुख यह भूल का ही परिणाम है' इसमें दो मत नहीं हो सकते। हमारे सुख के लिए, हिंसा जन्य प्रवृत्ति, दूसरे जीवों का संहार यह प्रकृति के नियमों से विपरीत व्यवहार है। और इस व्यवहार का ही परिणाम है कि, प्रकृति- कुदरत अपने शस्त्रों द्वारा उस हिंसा का प्रतिफल हमें देती है । I मानव जाति के लिए वनस्पति, फल, फूल का आहार निर्माण हो चुका है । और वह भी अनिवार्य है। उससे अधिक कदम आगे बढ़ाकर, अन्य जीवों की हिंसा द्वारा मानव जाति का रक्षम, यह प्रकृति के नियमों का उल्लंघन है । उस उल्लंघन का भयंकर फल हमें भोगना पड़ेगा, यह निश्चित है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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