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जीवन का विकास माने मानवता के गुणों का प्रकट होना। दया दाक्षिण्य हमदर्दी, प्रेम, सहानुभूति, कर्तव्य पालन, सदाचारयह मानवता के गुण हैं । 'आत्मनः प्रतिकूलानि परेशांन समा. चरेत' यह मानवता का प्रतीक है। 'आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन' यह मानवता की निशानी है । मातृवत् परदा. रेषु पर द्रव्येषु लोष्ठवन्' यह मानवता के उच्च गुणों के आधार स्तम्भ हैं। सत्यं वद, धर्म चरं, यह मानवता के सदाचरण हैं।
जिस शिक्षा से, मानवता के वे गुण प्रकट होते हो, वही शिक्षा, शिक्षा है ! वही शिक्षा जीवन विकास का साधन भूत है।
आज सारे भारतवर्ष में वर्तमान शिक्षा, हमारे जीवन विकास' में कितनी विघातक हो रही है। इसकी पुकार बड़े से बड़े शिक्षण शास्त्री देश के नेता और उच्चकोटि के शासक भी कर रहे हैं। किन्तु वर्तमान शिक्षा में कहां दोष है, इसका सूक्ष्मता से अवलोकन बहुत कम लोग करते हैं । और करते हैं, तो उसका सुधार करने का प्रयत्न नहीं करते, अथवा कम करते हैं ।
भारतीय संस्कृति से विपरीत संस्कृति ने, हमारी भारतीय संस्कृति के ऊपर सदियों तक आक्रमण किया। हमने बिना विचारे उसका अनुकरण किया। उनमें जो गुण थे, उसका अनुकरण तो नहीं किया। किन्तु उनको राजी रखने के लिए अथवा किन्हीं कारणों से उनको उन बातों का अनुकरण किया जिससे हमारी संस्कृति का नाश हो। जिसको हम सदाचरण मानते हैं । उससे हमारा पतन हो, और हमारे ध्येय से वंचित होकर हम अधिक से अधिक गुलामी की जंजीरों में जकड़े जाँय ।
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