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मनुष्य ने अपने हृदय को राक्षसी हृदय बनाया। अपनी हार्दिक दया को दूर कर अपने हृदय को निर्दय बनाया । मानवता की स्वाभाविक सात्विकता को मिटाकर, उसने तामसिकता उत्पन्न करली।
जब मनुष्य अपने स्थान को चूकता है, नीचे गिरता है तब वह यह समझाते हुए कि मैं भूल कर रहा हूं। अपने बचाव को झूठी दलीलें खड़ी करेगा। यह दशा अकसर मांसाहारी मनुष्यों की देखी जाती है। उनका कथन है कि मांसाहार बल को बढ़ाता है । जरा सोचने की बात है कि ऐसे लोग बल और करता के भेद को भूल जाते हैं। मांसाहार बल को नहीं बढ़ाता है किन्तु करता बढ़ाता है । हाथी और शेर के भेद को समझना चाहिए। हाथी में जो वास्तविक वल है बह शेर में नहीं है । शेर में करता है और हाथो में शान्तता है। हाथी अपने शांत स्वभाव और सात्विकता से लड़ाई के मैदान और जहां भी काम पड़ता है जो काम कर सकता है वह शेर नहीं कर सकता है। जो बोझा हाथी वहन कर सकता है, वह शेर नहीं कर सकता। हाथो में वह बल है यदि वह चाहे तो अपनी सूड में शेर को दबाकर टुड़े. टुकड़े कर सकता है । शेर अपनी क रता और तामसिकता से हाथी पर आक्रमण करता है, पर हाथी जब बिगड़ता है तब शेर की हिम्मत नहीं कि उसका सामना कर सके। सच्ची वीरता और क्र रता में यही अन्तर है । वीरता का बल जहां जरूरत होती है वहां ही विचारपूर्वक काम में लाया जाता है। क्र रता तामसिकता स्थान । प्रस्थान को नहीं देख सकती। अनावश्यक स्थानों पर भी उसका उपयोग हो जाने से अत्याचार हो जाता है।
यह निश्चित बात है कि मांसाहार वीरता को नहीं बढ़ावा । -यदि मांसाहार से वीरता बढ़ती तो आज संसार में मांसाहार के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com