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द्वारा हिजड़े भी बलवान बन जाते किन्तु नहीं, बल और वीरता बढ़ाने में मांसाहार कोई सहायक नहीं ! यह आक्षेप इतिहास और युक्ति से भी निराधार है कि मांसाहार न करने वाले लड़ाई नहीं कर सकते हैं। प्राचीन इतिहास में इसके अनेकों उदाहरण हैं जो निरामिष भोजी थे, उन्होंने मैदानों में- युद्ध में भाग लिया और सफलता प्राप्त की । जैन राजाओं, जैन मन्त्रियों और जैन सेनाधिपतियों के उदाहरण इतिहास के गगन में चमकते तारों के समान देदीप्यमान हैं ।
एक और भी बात विचारणीय है। जिस नाम से लोग मांस खाते हैं वह मांस बनता कहां से है ? किस में से है जिन जानवरों के मांस मांसाहारी खाते हैं वे प्रायः वनस्पति आहारी ही होते हैं। मांसाहारी जानवरों का जैसे शेर बिल्ली कुत्ता आदि का मांस लोग नहीं खाते वनस्पति के आहार से अपने मांस को पुष्ट करने वाले बकरे गाय भैंस बैल आदि का मांस लोग खाते हैं जानवर जिस पदार्थ से अपने शरीर को पुष्ट करते हैं बलशाली बनाते हैं वही पदार्थ तो मनुष्यों को भी बल देता है उस मूल वस्तु को जिसमें बल बढ़ाने की अद्भुत शक्ति रही है उसको न खाकर मांसाहार यह कहां की बुद्धिमत्ता है ?
आश्चर्य और दुख का विषय तो यह है कि जिस युरोप का अनुकरण करके हमारे भारतीय पढ़े लिखे और अन्य लोग दिन प्रतिदिन मांसाहार में अप्रसर हो रहे हैं वही यूरुप आज मांसाहार का बल पूर्वक निषेध कर रहा है। वहां दिन प्रतिदिन 'बैजीटेरियन सोसायटी बन रही है और वैज्ञानिक दृष्टि से मांसाहार का निषेध मानव जाति के लिए सिद्ध करने जा रहे हैं । हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि शरीर रचना प्राकृतिक
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