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उपयोग करने बाले के ऊपर उसका आधार है । जहर, जहर होते हुए भी, उसको समुचित रूप से परिणत करके उपयोग किया जाय तो वह अद्भुत बल दायक भी बन सकता है । इसमें तो किंचित भी सन्देह नहीं कि सिनेमा प्रचार का अद्भुत साधन है। जड़वादी लोगों ने उसका उपयोग पौद्गलिक सुखों और भोग विलास की पुष्टि के लिये भले ही किया हो । किन्तु उसी साधन का उपयोग हम हमारे देश की आध्यात्मिकता हमारे देश का ऐक्य, हमारे देश की उच्च शिक्षा आदि बातों के लिये करें तो वही सावन महा उपकारो हो सकता है । 'जीबन विकास' का मुख्य साधन शिक्षा है । मैं ऊपर कह चुका हूं कि राष्ट्र का उत्थान यदि हमें करना है तो हमारी शिक्षण प्रणाली में आमूलन परिवर्तन करने की आवश्यकता है । ऐसी अवस्था में यदि सिनेमा के द्वारा नवीन शिक्षण प्रणाली का प्रचार किया जाय तो हजारों शिक्षकों के द्वारा जो लाभ नहीं उठा सकते हैं । वह एक मात्र सिनेमा द्वारा उठा सकते हैं । हमारे बालक बालिकाओं के 'चरित्र-निर्माण' करने वाले ऐसे उच्चकोटि के शिज्ञरम शिक्षिकाएँ तैयार करने में हमें कई वर्ष लगेंगे । किन्तु सिनेमा ही एक ऐसा साधन है कि जिसके द्वारा जिस प्रकार का ढाँचा हम बालकों में ढालना चाहते हों उस प्रकार का प्रचार हम कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त पालकों और शिक्षकों के कर्तव्य का प्रचार भी इसी के द्वारा अनायास हो सकता है ।
भारतवर्ष में अभी भी ऐसी शिक्षण संस्थायें हैं जो हमारी प्राचीन शिक्षण प्रणाली और नवीन शिक्षण प्रणाली के मिश्ररम पूर्वक आदर्श पुरुषों के नेतृत्व में और उच्चकोटि के सदाचारी शिक्षकों द्वारा चलती है। ऐसी शिक्षण संस्थाओं की कार्य प्रणाली, शिक्षण पद्धति और उसके सारे वातावरण की फिल्में
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