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आधुनिक शिक्षा में सिनेमा का स्थान
शिक्षा, यह जीवन विकास का एक प्रधान साधन है, इस लिये जीवन के साथ शिक्षा का सम्बन्ध भी अनादिकाल से रहा है। समय के परिवर्तन के साथ शिक्षा में भी परिवर्तन होता रहा है। अर्थात् शिक्षा के साधन भी अनेकों बनते गये और उसमें परिवर्तन भी होता गया, किन्तु शिक्षा का आदर्श जो 'संस्कृति का संरक्षण' होना चाहिये, वह अवश्य रहा है । वह साधन साधन नहीं कहा जा सकता है, जो साध्य के आदर्श मे वंचित रखे या नीचे गिराये। बहुत से साध्य ऐसे होते हैं, जिसका आधार, उम्र साधन का उपयोग करने वाले के ऊपर रहता है। अथवा यों कहना चाहिये कि, प्रत्येक माघन में दो शक्तियाँ रही हैं, एक साध्य को सिद्ध करने की शक्ति और दूसरी साध्य से वंचित रखने या नीचे गिराने की शक्ति, उसके उपयोग करने वाले के ऊपर ही उसका आधार है । हनियार रक्षक भी है और नाशक भी, जहर मृत्यु को देने वाला है और शरीर को पुष्ट बनाने वाला भी। शास्त्र उन्नति पथ पर ले जाते
और वे ही शास्त्र शस्त्र का भी काम करते हैं । द्रव्य जीवन
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का साधन है, और नैतिक पतन करने वाला भी । संसार की ऐसी कोई वस्तु नहीं, जिसमें साधकता और बाघकता, संरक्षण और नाश के गुण न हो ।
वर्तमान समय में देखा जाय तो शिक्षण प्रणाली इस प्रकार की बनाई गई है, जो शिक्षण का मुख्य हेतु 'जीवन विकास' होना चाहिये, उससे मानव को वंचित रख रही है । मानव
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