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जीवन व्यतीत करता है। ऐसे महानुभावों का आदर-सन्मान करना आतिथ्य करना यह भी गृहस्थ का कर्तव्य है और यह व्रत भी साम्यवाद की वत्ति का ही द्योतक है। गृहस्थों के उप युक्त बारह व्रत स्पष्ट दिखलाते हैं कि प्रत्येक गृहस्थ को यह लक्ष्य में रखना चाहिये कि आवश्यकता से अधिक कोई भी चीज रखने का हमारा कोई हक नहीं और उपयुक्त व्रतों से यह भी स्पष्ट होता है कि साम्यवादी में हिंसकवृत्ति न हो दूसरों को परेशान दुःस्वी करने की वृत्ति न हो, लुटाऊ वृत्ति न हो, सत्ता लोलुपता न हो और संग्रहशीलता न हो। आज संसार में देखा जाता है कि दूसरे का भला करने का भाषम देने वाले स्वयं संग्रहशील बनते हैं, असाधारण परिग्रहधारी बनते हैं, मोटर और हवाई जहाजों के सिवाय जमीन पर पैर रखना बुरा समझते हैं। स्वयं पूँजीवादी बनते जाते हैं और जनता को दुःख सहन करने का उपदेश करते हैं। बातें तो भगवान महावीर, महात्मा बुद्ध और गांधीजी की अहिंसा की करते हैं, लेकिन स्वयं हिंसा से दूर नहीं होते।
कहने का आशय यह है कि संसार में साम्यवाद के सिवाय शान्ति नहीं । शान्ति स्थापना की अनेक योजनायें निकलती हैं, प्रयत्न भी होते हैं, किन्तु मेरा नम्रमत हैकि, मानव मानवके माथ में समानता का बर्ताव न करेगा, 'प्रात्मनःप्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत', इस सिद्धांत को नहीं अपनावेगा, जब तक रागद्वेश की वृत्ति कम नहीं होगी तब तक जगत में शान्ति कभी नहीं हो सकती । इसलिये हमें भगवान महावीर के उपदेशानुसार साम्यवृत्ति, समानभाव स्वयं उत्पन्न करना चाहिये और जगत में इम का प्रचार करना चाहिये ।।
यही संसार में शान्ति का एक मार्ग है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com