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-दूसरे के साथ समानता की भावना उत्पन्न नहीं करेंगे और व्यक्तिगत स्वार्थ व लोभ के अधीन होकर, अपने ही सुख को सुख समझते रहेंगे दूसरे के सुख का जरा भी विचार नहीं करेंगे, बल्कि अपने सुख की सिद्धि के लिये दूसरे का संहार करते रहेंगे, तब तक न व्यक्तिगत शान्ति होगी, न सामाजिक | अशान्ति का मूल कारण राग द्वेष है । राग द्वेष में से क्रोध, मान, माया, लोभ उत्पन्न होते हैं । और वह क्रोध, मान, माया, - लोभ लड़ाई का मूल कारण हैं
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आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व, भारत के महान् क्रान्तिकारी भगवान महावीर स्वामी ने इस बात पर मनो मंथन करके अतीन्द्रिय ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् यह सिद्धान्त प्रकाशित किया कि, 'सव्वे जीवावि इच्छन्ति जीविउ न मरिज ' - 'सभी जीव जीने को चाहते हैं, मरने को कोई नहीं चाहता ।' 'सभी सुख चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता ।' 'हमारे सुख के लिये दूसरों का नुकसान करना, हिंसा है।' 'यही पाप है', 'हमको ऐसा करने का कोई हक नहीं है ।' 'तुम जीओ और दूसरे को जीने दो ।' लेकिन इन सिद्धान्तों का पालन मनुष्य तब कर सकता है जब अपने जीवन में अहिंसा, संयम और तप की भावना को जाप्रत करता है । उसका आचरण करता है । इन्हीं तीन सिद्धान्तों का आचरण मानव जीवन में लाने के लिये दो प्रकार का धर्म भगवान महावीर ने प्रकाशित किया :- १ - साधु धर्म और २ - गृहस्थ धर्म
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साधु धर्म में सर्वथा हिंसा का त्याग, सर्वथा झूठ का त्याग, सर्वथा चोरी का त्याग, सर्वथा ब्रह्मचर्य का त्याग और सर्वथा परिग्रह का त्याग बनाया है । इस प्रकार सर्वथा त्यागी, संयमी, अपरिग्रही के द्वारा संसार में न व्यक्तिगत अशांति उत्पन्न हो
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