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मशान्ति होती है और न दूसरों को प्रशान्त कर सकता है। उन बारह व्रतों का संक्षिप्त स्वरूप देखिये।
उन बारह व्रतों के नाम ये हैं:-१-स्थूल प्रासातिपात विरमस व्रत, २-स्थूल मृषा वाद विरमण व्रत ३-स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत ४-स्थूल अब्रह्मचर्य विरमण व्रत ५-स्थूल परिग्रह विरमण व्रत ६-दिव्रत ७-भोगोपभोग विरमण व्रत ८-अनर्थदण्ड विरमण व्रत ६-सामायिक व्रत १० देशावकाशिक व्रत ११-पोषध व्रत १२-अतिथि संविभाग ब्रत । ___ उपर्युक्त बारह व्रतों में प्रथम के पांच व्रतों में स्थूल' शब्द इसलिये रक्खा गया है कि गृहस्थ हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म परिग्रह, का सर्वथा त्याग नहीं कर सकता। इसलिये उसका स्थूल दृष्टि से त्याग करने का है।
तात्विक द्रष्टि से देखा जाय तो उपर्युक्त बारहों व्रत इसलिये हैं कि अपने जीवन की प्रत्येक वस्तु में मनष्य मर्यादित बने । संग्रह शील न बने, ताकि उन चीजों का लाभ दूसरों को मिलता रहे। और खुद को भी अधिकाधिक प्राप्ति के लिये अशान्ति न रहे। वही समान भाव या साम्यवाद का हेतु है।
हम जीना चाहते हैं तो हम दूसरों को भी जीने दें। सिवाय कि अनिवार्य हिंसा कदाचित करनी पड़े, तो उसकी छूट गृहस्थों को दी। दूसरे झूठ बोलें यह हम पसन्द नहीं करते, इसलिये हम को भी झूठ नहीं बोलना चाहिये । हम हमारी चोरो को पसन्द नहीं करते अर्थात् बिना पूछे कोई हमारी चीज ले ले, यह हम पसन्द नहीं करते, इसलिये हमको खुद को चाहिये कि हम किसी की भी चीज को न उठायें। हमारी बहिन बेटी आदि के प्रति कोई कुदृष्टि करे यह भी हम पसन्द नहीं करते, इसलिये हमें भी चाहिए कि हम व्यभिचार प्रवृत्ति से दूर रहें। परिग्रह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com