________________
( १३ )
२ - शीघ्रता से न हो तो धीरे धीरे ही हमारे देश की शिक्षण संस्थाओं का परिवर्तन करना जरूरी है । प्रत्येक ग्राम में शिक्षण संस्थाओं के अनुपात में छात्रालय अवश्य हों । प्राचीन पद्धति के अनुसार नहीं तो, कम से कम प्राचीन और नवीनता का मिश्रण करके हमारी शिक्षण संस्थाएँ निर्माण करनी चाहिएँ । शिक्षक भले ही भिन्न भिन्न विषयों के अनेक हों किन्तु उम्र और शिक्षण के लिहाज से विद्यार्थियों के विभाग करके उनका एक साथ रहना, एकसाथ खाना पीना, रहन-सहन, आदि हों, एवं एक ही वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध, अनुभववृद्ध, व्यवहार कुशल, संयमी निर्लोभी अधिष्ठाता की देखभाल में उन विद्यार्थियों को रखा जाना चाहिए और शिक्षण के अतिरिक्त समय के लिए उनका कार्यक्रम ऐसा बनाया जाना चाहिए कि जिससे उनका शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास भी हो, उनमें अनेक प्रकार के गुण आवें और वे सच्चे नागरिक बनें ।
•
यद्यपि वर्तमान समय में विद्यालयों और महाविद्यालयों के साथ बाहर के विद्यार्थियों के लिए प्राय: छात्रालय ( होस्टल ) बने हैं परन्तु चरित्र निर्माण के लिए वे उपयोगी नहीं हैं। बाहर के विद्यार्थियों को रहने की अनुकूलता मात्र के वे छात्रालय हैं। मेरा आशय गुरुकुल जैसे छात्रालयों से है । किसी प्रकार के भेद-भाव न रखते हुये, शिक्षालयों में पढ़ने वाले सभी छात्रों के लिये, एक एक आदर्श - पुरुष की देखभाल में अमुक-अमुक संख्या में विद्यार्थियों को रखने का प्रबन्ध होना चाहिए। ऐसा होने से माता-पिता के किंवा बाह्य जगत के कुसंस्कारों से वे बच जायँगे आपस में भ्रातृभाव बढ़ेगा, छोटे-बड़े की भावना दूर हो जायगी, और एक ही गुरु-नेता के नेतृत्व में उनका आदर्श जीवन बनेगा । निस्सन्देह उनका जीवन संकुचित न रहे, इसलिए उनके प्रमोद
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com