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( २१ ) रक्खा जाना चाहिये । प्रत्येक शिक्षक में सत्यभाषण, सदाचार, प्रामाणिकता, नम्रता, विवेक, विनय आदि गुण अवश्य होने चाहिएँ । तथा उन्हें चौर्य, घूस, बीड़ी, सिगरेट इत्यादि बाह्य व्यसनों का त्याग करना चाहिए जो प्रथमदर्शन में ही दूसरों पर प्रभाव डालते हैं। ___एक बात और भी कह दूं। आज समस्त भारत में ऐसी अनेक संस्थाएं चल रही है जो प्रजा की जनता की सहायता से चलती हैं, शिक्षालयों के साथ-साथ छात्रालयों को भी रखती हैं और गुरुकुल पद्धति पर शिक्षण तथा बालकों के चरित्र निर्माण का कार्य करती हैं। ऐसी संस्थाओं को सरकार को काफी सहायता देकर आगे बढ़ाना चाहिए। वस्तुतः देखा जाय तो शिक्षा प्रचार के साथ चरित्र-निर्माण के कार्य में ऐसी संस्थाएँ सरकार का बहुत कुछ बोमा हलका करती हैं। ऐसी संस्थाएँ सरकार की ओर से चलाने में जो खर्चा करना पड़े, उसके आधे खरचे में, यदि वही कार्य होना हो, तो सरकार को ऐसे कार्य को अवश्य उत्तेजन देना चाहिए। शिक्षण और चरित्र निर्माण के कार्य में जनता का और शिक्षण प्रेमियों का इस प्रकार का सहकार, यह सचमुच ही अत्यन्त प्रशंसनीय कार्य समझा जा सकता है। बेशक, ऐसी संस्थाएँ सरकार की नीति के अनुसार साम्प्रदायिकता का विष फैलाने वाली और राज्य की बेवफा नहीं होनी चाहिए । स्वतन्त्र भारत में इस प्रकार जनता और सरकार के सहयोग से जो कार्य होंगे वे देश के लिए अधिक लाभप्रद और कार्य-सिद्ध कर हो सकेंगे। मेरे नम्र मत से ऐसी संस्थाएँ, फिर वे गुरुकुल हों या विद्यालय, महाविद्यालय हो चाहे बालमन्दिर कोई भी हों, सरकार को कम से कम पचास प्रविशत व्यय देने का नियम रखना चाहिये । किसी विशेष परिस्थिति में सरकार पचास प्रविशत से अधिक देकर भी उसको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com