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जिन विद्यार्थी और विद्यार्थिनियों के चरित्रनिर्माण की हम बातें करते हैं, उनके गुरुओं की प्रायः ऐसी दशा है। अभी कुछ दिनों पहले मध्यभारत शिक्षा विभाग के संचालक (डायरेक्टर) प्रसिद्ध शास्त्री और मनोविज्ञान के प्रखर अभ्यासी श्रीमान् मा महोदय ने उज्जैन के अपने एक भाषण में कहा था :
___ "नवीन समाज की रचना में राजनीतिज्ञों की अपेक्षा शिक्षकों का अधिक महत्वपूर्ण स्थान है और यदि वे इसके महत्व को नहीं समझते और नवरचना में अपना कर्तव्य पालन नहीं करते तो समाज की प्रगति हो नहीं सकती, परिवर्तित परिस्थितियों में अब शिक्षकों का यह अति महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है कि वे प्रजातन्त्रीय देश के उपयुक्त नागरिक निर्माण करें। इनका काम विषयों का अध्यापन मात्र नहीं है। हम केवल पाठक ही नहीं बल्कि शिक्षक भी हैं, उसका क्षेत्र बालक का सम्पूर्ण जीवन है और हमें बालक के समप्र व्यक्तित्व का निर्माण करना है, इसका अर्थ यह है कि हमें बालकों के चरित्र को भी एक स्वतन्त्र देश के अनुरूप बनाना है।"
थोड़े किन्तु महत्वपूर्ण शब्दों में शिक्षकों के कतव्य का जो चित्रण भनुभवी शिक्षासंचालक महोदय के द्वारा उपस्थित किया गया है, उनके प्रति हमारा प्रत्येक शिक्षक ध्यान दे और उसके अनुसार कर्तव्य पालन करे, तो अाज शिक्षा संस्थाओं में स्वर्ग उतर पड़े। हमारे बालक मानव-देव बनें । इसलिये सरकार से भी मेरा यह अनुरोध है कि शिक्षकों के उत्पन्न करने के लिए जो-जो ट्रोनिंग स्कूल खोले जाय उनमें पाठ्य-पुस्तकों और पढ़ाने की रीति के साथ एक 'शिक्षक' किंवा 'गुरू' की हैसियत से उनमें 'किन-किन गुणों को आवश्यकता है, इसका भी अवश्य ध्यान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com