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पाठ्य-पुस्तकों के चुनाव में कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखना आवश्यक है, जो मेरे नम्र मत के अनुसार निम्नप्रकार से है
:
(१) संसार के सारे पदार्थ तीन विषयों में विभक्त किये जा सकते हैं। हेय, ज्ञेय और उपादेय । त्यागने योग्य, जानने योग्य और आचरण करने योग्य । पाठ- प्रन्थों में इन तीनों विषयों का स्पष्टीकरण होना चाहिए, जिससे कि विद्यार्थी किसी प्रकार की भ्रान्ति में न रहें और किसी विषय के लिए व्यर्थ मागड़ा न करें ।
(२) प्रत्येक भारतीय धर्म, धर्मप्रचारक और धर्म के मौलिक सिद्धांतों का परिचय कराया जाय। इस परिचय में किसी प्रकार की अनुचितता, आक्षेप वा असभ्यता न आने पाबे, इसके लिये हो सके तो उन-उन धर्मी के तटस्थ, पर धर्मसहिष्णु विद्वानों से ऐसे ग्रन्थ लिखाये जायँ । ऐसा न हो सके तो, वे पाठ ऐसे उदार तथा विद्वान उस धर्म के अनुयायियों को दिखलाकर उनकी सम्मति से सम्मिलित किये जायँ ।
(३) ऐतिहासिक बातें, जो ऐसी पाठ्य-पुस्तकों में आवें, वे जिस समाज और धर्म से सम्बन्ध रखने वाली हों, उस समाज और धर्म के उदार इतिहासज्ञों को दिखाकर सम्मिलित करनी चाहिए। अभी-अभी बहुत से ऐसे नाटक तथा उपन्यास हिन्दी गुजराती तथा मराठी में प्रकाशित हुए हैं, जिनमें विषयों का रस उत्पन्न करने के इरादे से, द्वेषवृत्ति से अथवा वास्तविक इतिहास की अनभिज्ञता से, ऐसे अनुचित उल्लेख किये गए हैं, जिनके कारण समाजों में और लेखकों में बहुत बड़ा आन्दोलन हो रहा है । व्यर्थ इस प्रकार की असत्यता और परस्पर मनोदुःख, परस्पर घर्षण हों, ऐसा निमित्त न होने देना चाहिए ।
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