________________
( १४ ) प्रमोद के शारीरिक विकास और बौद्धिक विकास के माधन भो रग्बे जाने चाहिए । आधुनिक विद्यार्थियों का कोई गुरू नहीं है, उनका कोई आदर्श नहीं है, उनका कोई संयोजक नहीं है, ऐसा जो आरोप लगाया जाता है यदि वास्तव में सत्य भी है, तो यह दूर हो जायगा।
३-तीसरा विषय है विद्यार्थियों के पढ़ाने के विषयों का । आजकल आमतौर से कहा जाता है कि विद्यार्थियों के पढ़ाने के विषय इतने अधिक और निरर्थक हैं, जिनके भार से विद्यार्थी की बुद्धि का, मस्तिष्क का कचुम्बर (चूर्ण ) हो जाता है। खास करके उन विद्यार्थियों के लिये यह वस्तु अक्षम्य मानी जाती है जो कि प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में पढ़ते हैं छोटी उम्र के हैं । यह बात विचारणीय है। प्राचीन पद्धति के अनुसार रटन (कण्ठाग्र करने की) पद्धति का आजकल विरोध किया जा रहा है । परन्तु इसके बदले में विषयों और प्रन्थों का भार इतना बढ़ गया है कि जिससे विद्यार्थी और पालक दोनों को मानसिक एवं आर्थिक कष्ट उठाना ही पड़ता है। इसलिये शिक्षण के नत्र निर्माण में छोटे से लेकर बड़ों तक के शिक्षण क्रम में इस बात पर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है। होना तो यह चाहिए कि अमक कक्षा तक के सभी क्षात्रों को एक समान शिक्षण देने के पश्चात् छात्रों की अपनी अपनी अभिरुचि, बुद्धि की प्रेरणा
और संयोगों को देख कर के इच्छित विषय में उनको विकसित बनाने की अनुकूलता करनी चाहिए। ऐसा करने से और ऐमी अनुकूलतायें प्रदान कर देने से, वे अपने-अपने विषयों में सम्पूर्ण दक्ष हो सकते हैं। आधुनिक छात्र 'खंड-खंडशः पाण्डित्यम्' प्राप्त करने से एक भ) विषय में काफी दक्ष नहीं होता है बल्कि उससे विपरीत अनेक अरुचिकर विषयों का भार होने के कारण
फुटबाल, वाली-बाल, टेनिस, क्रिकेट, हाकी, कबड्डी, खो-खो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com